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व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल सप्तमी (द्वितीय)

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल सप्तमी (द्वितीय)

Saturday, 27 May 2023

चंदन की चोली, चंदन की गोली एवं कली के आभरन का मनोरथ

ज्येष्ठ मास तपत घाम एसेमें कहां सीधारे श्याम एसी कोन चतुर नार जाको बीरा लीनो हे।।

नेकधों कृपा कीजे हमहूको सुज दीजे जैये फेरि वाके धाम जाको नेह नवीनो हे।।1।।

बाँह पकरि भवन लाई सैया पर दिये बैठाई अरगजा अंग लगाई हियो सीतल कीनो है।।

रसिक प्रीतम कंठ लगाय रसमें रस सो मिलाय अरसपरस केल करत प्रीतम बस कीनो है।।2।।

विशेष- विगत ज्येष्ठ शुक्ल षष्ठी रात्रि 9 बज कर 12 मिनिट (25 मई 2023) से आगामी आषाढ़ कृष्ण पंचमी शाम 07 बज कर 06 मिनिट (8 जून 2023) तक सूर्य रोहिणी नक्षत्र में है.

इस अवधि में प्रभु को चंदन धराया जाना प्रशस्त (उत्तम) माना गया है अतः इस दिन से आगामी पंद्रह दिन श्रीजी को श्रीअंग में चंदन धराया जा सकता है.

वैष्णव अपने सेव्य स्वरूपों को भी प्रेमपूर्वक अपनी श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार चंदन धरा सकते हैं.

आज प्रभु के श्रीअंगों (वक्षस्थल, दोनों श्रीहस्त और दोनों चरणकमल) में कुल पांच केशर बरास मिश्रित चंदन की गोलियां धरायी जाती है.

श्रीजी में प्रतिदिन अथवा नियम से चंदन नहीं धराया जाता अपितु मनोरथियों द्वारा आयोजित चंदन धराने के मनोरथ होते हैं और मनोरथ के रूप में ऋतु के अनुरूप विविध सामग्रियां भी अरोगायी जाती हैं.

विशेष- आज राजभोग में आभरन बड़े करके चंदन की चोली, चंदन की गोली एवं कली के आभरन धराए जायेंगे.

ऊष्णकाल में सूर्य जब रोहिणी नक्षत्र में होवे तब शीतोपचारार्थ चंदन की गोली, चंदन की चोली, लपट-झपट, ख़स-खाना, जल-विहार, शीतल जल से स्नान (संध्या में) आदि प्रशस्त (उत्तम) माने गए हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज बने नंदनंदनरी नव चंदनको तन लेप किये l

तामे चित्र बने केसर के राजत हैं सखी सुभग हिये ll 1 ll

तन सुखको कटि बन्यो हे पिछोरा ठाड़े है कर कमल लिये l

रूचि वनमाल पीत उपरेना नयन मेन सरसे देखिये ll 2 ll

करन फूल प्रतिबिंब कपौलन मृगमद तिलक लिलाट दिये l

‘चतुर्भुज’ प्रभु गिरिधरन लाल छबि टेढ़ी पाग रही भृकुटी छिये ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में केसर एवं चंदन मिश्रित चंदनी रंग की मलमल की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसर मिश्रित चंदनिया रंग की मलमल की चोली एवं पिछोड़ा धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर चंदनिया रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, तुर्रा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में मोती के कर्णफूल की एक जोड़ी धराये जाते हैं. श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, गंगा जमनी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट एवं गोटी ऊष्णकाल के आते है.


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राजभोग में आभरन बड़े करके चंदन की चोली, चंदन की गोली एवं कली के आभरन धराए जाते हैं.

 
 
 

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