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व्रज - फाल्गुन कृष्ण चतुर्थी

व्रज - फाल्गुन कृष्ण चतुर्थी

Wednesday, 28 February 2024

श्वेत लट्ठा के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर गुलाबी ग्वालपगा के ऊपर पगा चंद्रिका के शृंगार

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

श्याम सुभगतन शोभित छींटे नीकी लागी चंदनकी ।

मंडित सुरंग अबीरकुंकुमा ओर सुदेश रजवंदनकी ।।१।।

कुंभनदास मदन तनमन बलिहार कीयो नंदनंदनकी ।

गिरिधरलाल रची विधि मानो युवति जन मन कंदनकी ।।२।।

साज – आज श्रीजी में श्वेत मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत लट्ठा का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं लाल रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि की टिपकियों से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को फ़ागण का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग के ग्वालपगा के ऊपर सिरपैंच, बीच की चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में लोलकबिंदी धरायी जाती हैं.

आज एक माला अक्काजी की धरायी जाती हैं.

गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, फ़िरोज़ा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी(एक सोना का) धराये जाते हैं.

पट चीड़ का एवं गोटी फागुन की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं.


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श्रीमस्तक पर पगा रहे लूम तुर्रा नहीं आवे.

 
 
 

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