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व्रज - फाल्गुन शुक्ल तृतीया

व्रज - फाल्गुन शुक्ल तृतीया

Sunday, 02 March 2025

नेंक मोहोंड़ो मांड़न देहो होरी के खिलैया ।

जो तुम चतुर खिलार कहावत अंगुरीन को रस लेहौ ।।1।।

उमड़े घुमड़े फिरत रावरे सकुचत काहे हो ।

सूरदास प्रभु होरी खेलों फगुवा हमारो देहो ।।2।।


पीले लट्ठा के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर टिपारा का श्रृंगार


राजभोग खेल में एक गुलाल व एक अबीर की पोटली प्रभु की कटि पर बांधी जाती है. प्रभु के कपोल भी मांडे जाते हैं.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : गोरी)


श्रीवल्लभकुल मंडन प्रकटे श्री विट्ठलनाथ l

जे जन चरन न सेवत तिनके जन्म अकाथ ll 1 ll

भक्ति भागवत सेवा निसदिन करत आनंद l

मोहन लीला-सागर नागर आनंद कंद ll 2 ll

सदा समीप विराजे श्री गिरिधर गोविंद l

मानिनी मोद बढ़ावे निजजन के रवि चंद ll 3 ll

श्रीबालकृष्ण मनरंजन खंजन अंबुज नयन l

मानिनी मान छुड़ावे बंक कटाच्छन सेन ll 4 ll

श्रीवल्लभ जगवल्लभ करूणानिधि रघुनाथ l

और कहां लगि बरनो जगवंदन यदुनाथ ll 5 ll

श्रीघनश्याम लाल बल अविचल केलि कलोल l

कुंचित केस कमल मुख जानो मधुपन के टोल ll 6 ll

जो यह चरित्र बखाने श्रवन सुने मन लाय l

तिनके भक्ति जू बाढ़े आनंद घोस विहाय ll 7 ll

श्रवन सुनत सुख उपजत गावत परम हुलास l

चरण कमलरज पावन बलिहारी ‘कृष्णदास’ ll 8 ll


साज - आज श्रीजी में आज सफ़ेद रंग की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, अबीर व चन्दन से कलात्मक खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को पीले लट्ठा का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाडे वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं.


श्रृंगार – आज श्रीजी को वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. श्वेत मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर पीले रंग की टिपारा की टोपी के ऊपर मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मीना के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.

बायीं और मीना की चोटी धरायी जाती है.

श्रीकंठ में अक्काजी की दो मालाजी धरायी जाती है. लाल एवं श्वेत पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, स्याम मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट चीड़ का व गोटी फाल्गुन की आती है.



संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े किये जाते हैं. टिपारा बड़ा नहीं किया जाता व लूम तुर्रा भी नहीं धराये जाते हैं.

 
 
 

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