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व्रज - फाल्गुन शुक्ल द्वितीया

व्रज - फाल्गुन शुक्ल द्वितीया

Saturday, 01 March 2025


नवरंगी लाल बिहारी हो तेरे,द्वै बाप,द्वै महतारी ।।

नवरंगीले नवल बिहारी हम, दैंहि कहा कही गारी ।।१।।

द्वै बाप सबै जग जाने, सोतो वेद पुरान बखाने।।

वसुदेव देवकी जाये, सो तो नंदमहर के आये ।।२।।

हम बरसानेकी नारी, तुम्हें दें दें हँसि गारी ।।

तेरी भूआ कुंति रानी, सो तो सूरज देखी लुभानी।।३।।

तेरी बहन सुभद्रा क्वारी, सो तो अर्जुन संग सिधारी।।

तेरी द्रुपदसुता सी भाभी, सो तो पांच पुरुष मिलि लाभी।।४।।

हम जाने जू हम जानै, तुम उखल हाथ बँधाने।।

हम जानी बात पहिचानी, तुम कब ते दधि दानी।।५।।

तेरी माया ने सब जग ढूंढ्यो,कोई छोड्यो न बारो बूढ्यो।।

"जन कृष्णा" गारी गावे, तब हाथ थार कों लावे।।६।।


चंदन की चोली


विशेष - माघ और फाल्गुन मास में होली की धमार एवं विविध रसभरी गालियाँ भी गायी जाती हैं.

विविध वाद्यों की ताल के साथ रंगों से भरे गोप-गोपियाँ झूमते हैं. कई बार गोपियाँ प्रभु को अपने झुण्ड में ले जाती हैं और सखी वेश पहनाकर नाच नचाती हैं और फगुआ लेकर ही छोडती हैं.


इसी भाव से आज श्रीजी को नियम से चन्दन की चोली धरायी जाती है. फाल्गुन मास में श्रीजी चोवा, गुलाल, चन्दन एवं अबीर की चोली धराकर सखीवेश में गोपियों को रिझाते हैं.


कीर्तनों में राजभोग समय अष्टपदी गाई जाती है.

राजभोग के खेल में प्रभु के कपोल मांडे जाते हैं वहीँ चोली पर कोई भी सामग्री से खेल नहीं होता.


वैष्णवों पर फेंट भर कर गुलाल उड़ाई जाती है.


राजभोग दर्शन -


कीर्तन (राग : सारंग)


अहो पिय लाल लड़ेंती को झुमका, सरस सुर गावत मिल व्रजबाल, अहो कल कोकिल कंठ रसाल ll

लाल बलि झुमका हो ll ध्रु ll

नवजोबनी शरद शशि वदनी युवती यूथ जुर आई l नवसत साज श्रृंगार सुभग तन करन कनक पिचकाई ll

एकन सुवन यूथ नवलासी दमिनीसी दरसाई l एक सुगंध संभार अरगजी भरन नवलको आई ll 1 ll

पहेरे वसन विविध रंगरंगन अंग महारस भीनी l अतरोंटा अंगिया अमोल तन सुख सारी अति झीनी ll

गजगति मंद मराल चाल झलकत किंकिणी कटि झीनी l चोकी चमक उरोज युगल पर आन अधिक छबि दीनी ll 2 ll

मृगमद आड़ ललाट श्रवण ताटक तरणि धुति हारी l खंजन मान हरन अखियां अंजन रंजित अनियारी ll

यह बानिक बन संग सखी लीनी वृषभान दुलारी l एक टक दृष्टि चकोर चंद ज्यों चितये लाल विहारी ll 3 ll

रुरकत हार सुढ़ार जलजमनि पोत पुंज अति सोहे l कंठसरी दुलरी दमकनि चोका चमकनि मन मोहे ll

बेसर थरहरात गजमोती रति भूली गति जो हे l सीस फूल सीमान्त जटित नग बरन करन कवि को हे ll 4 ll

नवलनिकुंज महल रसपुंज भरे प्यारी पिय खेले l केसर और गुलाल कुसुमजल घोर परस्पर मेले ll

मधुकर यूथ निकट आवत झुक अति सुगंध की रेले l प्रीतम श्रमित जान प्यारी तब लाल भूजा भर झेले ll 5 ll

बहुविध भोग विलास रासरस रसिक विहारन रानी l नागर नृपति निकुंज विहारी संग सुरति रति मानी ll

युगलकिशोर भोर नही जानत यह सुख रैन विहानी l प्रीतम प्राण पिया दोऊ विलसत ललितादिक गुनगानी ll 6 ll


साज - आज श्रीजी में आज सफ़ेद रंग की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, अबीर व चन्दन से कलात्मक खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को सफ़ेद लट्ठा के सूथन, घेरदार वागा एवं चोली धराये जाते हैं. चोली के ऊपर आधी बाँहों वाली चन्दन की चंदनिया रंग की चोली धरायी जाती है. चंदनिया रंग का ही कटि-पटका ऊर्ध्वभुजा की ओर धराया जाता है. गहरे हरे रंग के ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं.

चोली को छोड़कर अन्य सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.

प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं.


श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. लाल मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर सफ़ेद रंग की खिड़की की छज्जेदार-पाग के ऊपर सिरपैंच, दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में गोल कर्णफूल धराये जाते हैं.

श्रीकंठ में आज त्रवल नहीं धराये जाते वहीँ कंठी धरायी जाती है. श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट चीड़ का व गोटी फाल्गुन की आती है.



संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीमस्तक व श्रीकंठ के आभरण बड़े किये जाते हैं. शयन समय श्रीमस्तक पर रुपहली लूम-तुर्रा धराये जाते हैं.

 
 
 

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