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व्रज – भाद्रपद कृष्ण अमावस्या

व्रज – भाद्रपद कृष्ण अमावस्या

(कुशग्रहणी अमावस्या)

Saturday, 23 August 2025


छप्पनभोग मनोरथ (बड़ा मनोरथ)


आज श्रीजी में श्रीजी में किन्हीं वैष्णव द्वारा आयोजित छप्पनभोग का मनोरथ होगा.

नियम (घर) का छप्पनभोग वर्ष में केवल एक बार मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा को ही होता है. इसके अतिरिक्त विभिन्न खाली दिनों में वैष्णवों के अनुरोध पर श्री तिलकायत की आज्ञानुसार मनोरथी द्वारा छप्पनभोग मनोरथ आयोजित होते हैं.

इस प्रकार के मनोरथ सभी वैष्णव मंदिरों एवं हवेलियों में होते हैं जिन्हें सामान्यतया ‘बड़ा मनोरथ’ कहा जाता है.

बड़ा मनोरथ के भाव से श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.


आज दो समय की आरती थाली की आती हैं.


मणिकोठा, डोल-तिबारी, रतनचौक आदि में छप्पनभोग के भोग साजे जाते हैं अतः श्रीजी में मंगला के पश्चात सीधे राजभोग अथवा छप्पनभोग (भोग सरे पश्चात) के दर्शन ही खुलते हैं.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.

राजभोग की अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता एवं सखड़ी में मीठी सेव, केसरयुक्त पेठा व पाँच-भात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात) अरोगाये जाते हैं.


छप्पनभोग दर्शन में प्रभु सम्मुख 25 बीड़ा सिकोरी (सोने का जालीदार पात्र) में रखे जाते है.


मल्लकाछ-टिपारा एवं पटका के शृंगार


मल्लकाछ शब्द दो शब्दों (मल्ल एवं कच्छ) से बना है. ये एक विशेष परिधान है जो आम तौर पर पहलवान मल्ल (कुश्ती) के समय पहना करते हैं. यह श्रृंगार पराक्रमी प्रभु को वीर-रस की भावना से धराया जाता है.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


मदन गोपाल गोवर्धन पूजत l

बाजत ताल मृदंग शंखध्वनि मधुर मधुर मुरली कल कूजत ll 1 ll

कुंकुम तिलक लिलाट दिये नव वसन साज आई गोपीजन l

आसपास सुन्दरी कनक तन मध्य गोपाल बने मरकत मन ll 2 ll

आनंद मगन ग्वाल सब डोलत ही ही घुमरि धौरी बुलावत l

राते पीरे बने टिपारे मोहन अपनी धेनु खिलावत ll 3 ll

छिरकत हरद दूध दधि अक्षत देत असीस सकल लागत पग l

‘कुंभनदास’ प्रभु गोवर्धनधर गोकुल करो पिय राज अखिल युग ll 4 ll


साज – आज श्रीजी में माखन-चोरी लीला के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज लाल सफ़ेद लहरियाँ का मल्लकाछ एवं पटका धराया जाता है. इस श्रृंगार को मल्लकाछ-टिपारा का श्रृंगार कहा जाता है. ठाड़े वस्त्र स्याम रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज छेड़ान (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्वआभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर टिपारा का साज धराया जाता है जिसमें लाल सफ़ेद टिपारे के ऊपर मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में हरे मीना के मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं. चोटीजी नहीं धराई जाती हैं.

श्री कंठ में कमल माला एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, झीने लहरियाँ के वेणुजी और वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं.


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पट लाल एवं गोटी चाँदी की बाघ-बकरी की आती हैं.

 
 
 

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