व्रज – भाद्रपद कृष्ण अमावस्या (द्वितीय)
- Reshma Chinai

- Sep 15, 2023
- 2 min read
व्रज – भाद्रपद कृष्ण अमावस्या (द्वितीय)
Friday, 15 September 2023
मल्लकाछ-टिपारा एवं पटका के शृंगार
मल्लकाछ शब्द दो शब्दों (मल्ल एवं कच्छ) से बना है. ये एक विशेष परिधान है जो आम तौर पर पहलवान मल्ल (कुश्ती) के समय पहना करते हैं. यह श्रृंगार पराक्रमी प्रभु को वीर-रस की भावना से धराया जाता है.
आज कीर्तनों में माखनचोरी एवं गोपियों के उलाहने के पद गाये जाते हैं.
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : आशावरी)
तेरे लाल मेरो माखन खायो l
भर दुपहरी देखि घर सूनो ढोरि ढंढोरि अबहि घरु आयो ll 1 ll
खोल किंवार पैठी मंदिरमे सब दधि अपने सखनि खवायो l
छीके हौ ते चढ़ी ऊखल पर अनभावत धरनी ढरकायो ll 2 ll
नित्यप्रति हानि कहां लो सहिये ऐ ढोटा जु भले ढंग लायो l
‘नंददास’ प्रभु तुम बरजो हो पूत अनोखो तैं हि जायो ll 3 ll
साज – आज श्रीजी में माखन-चोरी लीला के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.
वस्त्र – श्रीजी को आज लाल पीले लहरियाँ का मल्लकाछ एवं पटका धराया जाता है. इस श्रृंगार को मल्लकाछ-टिपारा का श्रृंगार कहा जाता है. ठाड़े वस्त्र स्याम रंग के धराये जाते हैं.
श्रृंगार – प्रभु को आज छेड़ान (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. सोने के सर्वआभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर टिपारा का साज धराया जाता है जिसमें लाल पीले टिपारे के ऊपर मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में गुलाबी मीना के मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं. चोटीजी नहीं धराई जाती हैं.
श्री कंठ में कमल माला एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोन के वेणुजी और वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट लाल एवं गोटी चाँदी की बाघ-बकरी की आती हैं.




Comments