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व्रज - भाद्रपद कृष्ण नवमी

व्रज - भाद्रपद कृष्ण नवमी

Saturday, 20 August 2022

नंद घर आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की l

हाथी दीने, घोड़ा दीने और दीनी पालकी ll

सभी वैष्णवों को श्रीकृष्ण जन्मोत्सव व नन्द महोत्सव की ख़ूबख़ूब बधाई

नंद महोत्सव

व्रज भयो महरिके पुत, जब यह बात सुनी, सुनि आनंदे सब लोग, गोकुल गणित गुनी l

आज की Post को गत रात्रि से प्रारंभ करता हूँ. गत रात्रि शयनभोग अरोगकर प्रभु रात्रि लगभग 9.30 बजे जागरण में बिराज जाते हैं.

रात्रि लगभग 11.45 को जागरण के दर्शन बंद होते हैं, भीतर रात्रि 12 बजे भीतर शंख, झालर, घंटानाद की ध्वनि के मध्य प्रभु का जन्म होता है.

श्रीजी में जन्म के दर्शन बाहर नहीं खोले जाते जबकि श्री नवनीतप्रियाजी में जन्म के दर्शन सीमित व्यक्तियों को होते हैं.

प्रभु जन्म के समय नाथद्वारा नगर के रिसाला चौक में प्रभु को 21 तोपों की सलामी दी जाती है. इस अद्भुत परंपरा के साक्षी बनने के लिये प्रतिवर्ष वहां हजारों की संख्या में नगरवासी व पर्यटक एकत्र होते हैं.

रात्रि 12 बजे पश्चात जन्म के समय श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्ध के तृतीय अध्याय के साढ़े आठ श्लोक तीन बार बोल कर निज मन्दिर के पट खुलते हैं.

शंख, झालर, घंटानाद की ध्वनि के मध्य प्रभु का जन्म होता है.

श्रीजी में प्रभु सम्मुख विराजित श्री बालकृष्णलालजी पंचामृत स्नान होता है, तदुपरांत महाभोग धरा जाता है जिसमें पंजीरी के लड्डू, मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू, मेवाबाटी, केशरिया घेवर, केशरिया चन्द्रकला, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बर्फी, दूधपूड़ी (मलाई-पूड़ी), केशर युक्त बासोंदी, जीरा युक्त दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, श्रीखंड-वड़ी, घी में तले बीज-चालनी के सूखे मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा, कई प्रकार के फल आदि अरोगाये जाते हैं.

प्रातः लगभग 5.30 बजे महाभोग सराये जाते हैं. भोग सरे पश्चात नन्दबाबा (श्रीजी के मुखियाजी), यशोदाजी (श्री नवनीतप्रियाजी के मुखियाजी), गोपियों एवं ग्वाल (श्रीजी व नवनीतप्रियाजी के सेवक व उनके परिवारजन) को गहनाघर, दर्ज़ीखाना, उस्ताखाना आदि के सेवक तैयार करते हैं.

अनोसर नहीं होने से श्रीजी में जगावे के कीर्तन नहीं गाये जाते.

महाभोग सराने के पश्चात झारीजी नई आती है और श्रीकंठ में मालाजी नई धराई जाती हैं एवं आरसी चार झाड़ की आती है.

इसके अलावा नंदमहोत्सव मे श्रृंगार, वस्त्र, साज़ इत्यादि जन्माष्टमी के दिन वाले ही रहते है.

प्रातः लगभग 6.30 बजे नंदबाबा बने श्रीजी के मुखियाजी लालन में छठी पूजन को पधारते हैं और छठी पूजन के उपरांत पूज्य श्री तिलकायत श्री नवनीतप्रियाजी को श्रीजी में पधराते हैं.

नंदबाबा व यशोदाजी श्रीजी के सम्मुख सोने के पलने में प्रभु श्री नवनीतप्रियाजी को झुलाते है.

नंदमहोत्सव के भोग में पलने की दाई तरफ रंगीन वस्त्र से ढँक कर दूधघर एवं खांडघर की सामग्री, माखन मिश्री तथा पंजीरी धरी जाती है वहीँ पलने की बायीं ओर पडघा के ऊपर झारीजी पधराये जाते है.

१२ बिड़ी अरोगाई जाती हैं और चार आरती करके न्योछावर करके राई लोन (नमक) से नज़र उतारी जाती हैं.

सभी भीतरिया, अन्य सेवक व उनके परिवारजन गोपियाँ ओर ग्वाल-बाल का रूप धर कर मणिकोठा में घेरा बनाकर नाचते-गाते हैं और दर्शनार्थी वैष्णवों पर हल्दी मिश्रित दूध-दही का छिडकाव करते हैं.

कीर्तन – (राग : सारंग)

हेरि है आज नंदराय के आनंद भयो l

नाचत गोपी करत कुलाहल मंगल चार ठयो ll 1 ll

राती पीरी चोली पहेरे नौतन झुमक सारी l

चोवा चंदन अंग लगावे सेंदुर मांग संवारी ll 2 ll

माखन दूध दह्यो भरिभाजन सकल ग्वाल ले आये l

बाजत बेनु पखावज महुवरि गावति गीत सुहाये ll 3 ll

हरद दूब अक्षत दधि कुंकुम आँगन बाढ़ी कीच l

हसत परस्पर प्रेम मुदित मन लाग लाग भुज बीच ll 4 ll

चहुँ वेद ध्वनि करत महामुनि पंचशब्द ढ़म ढ़ोल l

‘परमानंद’ बढ्यो गोकुलमे आनंद हृदय कलोल ll 5 ll

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज महा मंगल मेहराने l

पंच शब्द ध्वनि भीर बधाई घर घर बैरख बाने ll 1 ll

ग्वाल भरे कांवरि गोरस की वधु सिंगारत वाने l

गोपी ग्वाल परस्पर छिरकत दधि के माट ढुराने ll 2 ll

नाम करन जब कियो गर्गमुनि नंद देत बहु दाने l

पावन जश गावति ‘कटहरिया’ जाही परमेश्वर माने ll 3 ll

कीर्तन – (राग : सारंग)

सब ग्वाल नाचे गोपी गावे l प्रेम मगन कछु कहत न आवे ll 1 ll

हमारे राय घर ढोटा जायो l सुनि सब लोक बधाये आयो ll 2 ll

दूध दधि घृत कांवरि ढोरी l तंदुल डूब अलंकृत रोरी ll 3 ll

हरद दूध दधि छिरकत अंगा l लसत पीत पट बसन सुरंगा ll 4 ll

ताल पखावज दुंदुभि ढोला l हसत परस्पर करत कलोला ll 5 ll

अजिर पंक गुलफन चढि आये l रपटत फिरत पग न ठहराये ll 6 ll

वारि वारि पटभूषन दीने l लटकत फिरत महारस भीने ll 7 ll

सुधि न परे को काकी नारी l हसि हसि देत परस्पर तारी ll 8 ll

सुर विमान सब कौतिक भूले l मुदित त्रिलोक विमोहित फूले ll 9 ll

सभी वैष्णव नाचते, गाते आनंद से "लालो आयो रे...लालो आयो रे" गाते हैं.

नंदमहोत्सव के दर्शन लगभग 11 बजे तक खुले रहते हैं व दर्शन के उपरांत श्री नवनीतप्रियाजी अपने घर पधारकर मंगलभोग अरोगते हैं.

वहीँ दूध-दही से सरोबार मणिकोठा, डोल-तिबारी रतन-चौक, कमल-चौक सहित पूरे मंदिर को जल से धोया जाता है.

नंदमहोत्सव के पश्चात पूज्य श्री तिलकायत एवं श्री विशालबावा, नंदबाबा बने श्रीजी के मुखियाजी को कीर्तन समाज व ग्वाल-बाल की टोली के साथ श्री महाप्रभुजी की बैठक में पधराते हैं

मंगला के दर्शन लगभग 12.15 बजे खुलते हैं. आज के दिन मंगला और श्रृंगार दोनों दर्शन साथ में होते हैं. उसी दर्शन में केवल टेरा लेकर मालाजी धरायी जाती है और श्रृंगार के कीर्तन गाये जाते हैं.

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में प्रभु को कूर के गुंजा, कठोर मठड़ी, सेव के लड्डू व दूधघर में सिद्ध बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.

ग्वाल दर्शन नहीं खोले जाते व राजभोग दर्शन दोपहर लगभग 2.15 बजे खुलते हैं. आगे का क्रम अन्य दिनों के जैसे ही होता है.

राजभोग से शयन तक सभी समां में बधाई के कीर्तन गाये जाते हैं.

जन्माष्टमी के दिन धराया हुआ श्रृंगार आज शयन मे बड़ा होता है.


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