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व्रज – माघ शुक्ल एकादशी

व्रज – माघ शुक्ल एकादशी

Saturday, 08 February 2025


श्वेत लट्ठा के घेरदार वागा ,केसरी पटका एवं श्रीमस्तक पर केसरी गोल पाग पर मोर चंद्रिका के शृंगार


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : वसंत) (अष्टपदी)


खेलत वसंत गिरिधरनलाल, कोकिल कल कूजत अति रसाल ll 1 ll

जमुनातट फूले तरु तमाल, केतकी कुंद नौतन प्रवाल ll 2 ll

तहां बाजत बीन मृदंग ताल, बिचबिच मुरली अति रसाल ll 3 ll

नवसत सज आई व्रजकी बाल, साजे भूखन बसन अंग तिलक भाल ll 4 ll

चोवा चन्दन अबीर गुलाल, छिरकत पिय मदनगुपाल लाल ll 5 ll

आलिंगन चुम्बन देत गाल, पहरावत उर फूलन की माल ll 6 ll

यह विध क्रीड़त व्रजनृपकुमार, सुमन वृष्टि करे सुरअपार ll 7 ll

श्रीगिरिवरधर मन हरित मार, ‘कुंभनदास’ बलबल विहार ll 8 ll


साज – आज श्रीजी में आज सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया गया है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत लट्ठा का रंगों की छांट वाला एवं सफ़ेद ज़री की तुईलैस की दोहरी किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं केसरी रंग का कटि-पटका धराये जाते हैं.

ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.


श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फाल्गुन के लाल एवं सफ़ेद मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर केसरी रंग की गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. लाल एवं सफ़ेद पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट चीड़ का व गोटी फाल्गुन की आती है.



संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं.

 
 
 

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