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व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण चतुर्थी

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण चतुर्थी

Tuesday, 23 November 2021


नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री दाऊजी कृत छह स्वरुप का उत्सव


विक्रमाब्द १८७९ में आज के दिन नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री दाऊजी ने श्री गोवर्धनघरण प्रभु श्रीजी तथा श्री नवनीतप्रियाजी के साथ श्री मथुरेशजीजी, श्री विट्ठलनाथजी, श्री द्वारकाधीशजी, श्री गोकुलनाथजी, श्री गोकुलचन्द्रमाजी तथा श्री मदनमोहनजी को पधराकर छप्पनभोग सहित विविध मनोरथ अंगीकृत कराये.

इन सभी निधि स्वरूपों के साथ काशी के श्री मुकुंदरायजी को छठे घर के स्वरुप के रूप में पधराये थे.


इस उपरांत अन्य गोदी के स्वरूपों सहित कुल 14 स्वरुप पधारे थे परन्तु आज का उत्सव छह स्वरूपोत्सव ही कहा जाता है.


उस दिन आपके द्वारा अंगीकार कराया लाल ज़री का साज एवं वनमाला का श्रृंगार आज भी धराया जाता है.


आज का सेवाक्रम चन्द्रावलीजी की ओर से होता है.


सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

पूरे दिन यमुना जल की झारी भरी जाती है. दो समय की आरती थाली से करी जाती हैं.

आज से नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविंदलालजी महाराजश्री के उत्सव की पाँच दिन की बधाई बेठती हैं.


आज नूतन उत्सव के कारण नूतन श्रृंगार अंगीकार किया जाता है. सामान्यतया श्रीजी में दुमाला के साथ कुंडल नहीं धराये जाते परन्तु आज ज़री के बीच के दुमाला के साथ मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.

चन्द्रावलीजी के भाव से श्वेत ज़री का अंतवर्ती पटका धराया जाता है.


छह स्वरूपों के छप्पनभोग में बीच को दुमाला एवं सुनहरी ज़री के वस्त्र व्रजलीला के भाव से धराये जाते हैं.


आज के दिन छः स्वरुप पधारे थे अतः श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में चन्द्रावलीजी के भाव से यशस्वरुप चन्द्रमा की भांति स्वच्छ सफेद चाशनी वाली चन्द्रकला और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.


राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है वहीँ सखड़ी में मीठी सेव व केशरयुक्त पेठा अरोगाये जाते हैं.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


श्रीवल्लभ श्रीवल्लभ श्रीवल्लभ मुख जाके l

सुन्दर नवनीत के प्रिय आवत हरि ताही के हिय

जन्म जन्म जप तप करि कहा भयो श्रम थाके ll 1 ll

मन वच अध तूल रास दाहन को प्रकट अनल पटतरको

सुरनर मुनि नाहिन उपमा के l

‘छीतस्वामी’ गोवर्धनधारी कुंवर आये सदन प्रकट भये

श्रीविट्ठलेश भजन को फल ताके ll 2 ll


साज – श्रीजी में आज लाल आधारवस्त्र (Base) पर सुनहरी ज़री के बूटों के ज़रदोज़ी के काम (Work) वाली तथा श्याम आधारवस्त्र के ऊपर सुनहरी ज़री की पुष्प-लता की सुन्दर सज्जा वाले हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद रंग की बिछावट की जाती है.


वस्त्र – श्रीजी में आज सुनहरी ज़री का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा एवं ऊर्ध्वभुजा की ओर रुपहली ज़री का अंतवर्ती पटका धराया जाता है. श्वेत एवं सुनहरी ज़री के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – आज श्रीजी को वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. उत्सववत हीरा की प्रधानता के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर रुपहली ज़री के बीच के दुमाला के ऊपर पन्ना का सिरपैंच (रूप-चौदस को आवे वह), सुनहरी जमाव की बीच की चन्द्रिका (काशी की), एक कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.

आज चोटीजी नहीं धराई जाती हैं.

कली, कस्तूरी आदि सब माला धरायी जाती है. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

हीरा के वेणुजी एवं हीरा व पन्ना के वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट काशी का एवं गोटी कूदती हुई गायों की आती हैं.

आरसी शृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में आरसी सोना के डांडी की आती है.


संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर दिए जाते हैं. श्रीकंठ में छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. दुमाला बड़ा नहीं किया जाता और लूम-तुर्रा भी नहीं धराये जाते.

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