top of page
Search

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण चतुर्थी

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण चतुर्थी

Friday, 01 December 2023

नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री दाऊजी कृत छह स्वरुप का उत्सव, छप्पनभोग मनोरथ (बड़ा मनोरथ)

आज के दिन छः स्वरुप पधारे थे अतः श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में चन्द्रावलीजी के भाव से यशस्वरुप चन्द्रमा की भांति स्वच्छ सफेद चाशनी वाली चन्द्रकला और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है वहीँ सखड़ी में मीठी सेव व केशरयुक्त पेठा अरोगाये जाते हैं.

छप्पनभोग मनोरथ (बड़ा मनोरथ)

आज श्रीजी में किन्हीं वैष्णव द्वारा आयोजित छप्पनभोग का मनोरथ होगा.

मणिकोठा, डोल-तिबारी, रतनचौक आदि में छप्पनभोग के भोग साजे जाते हैं अतः श्रीजी में मंगला के पश्चात सीधे राजभोग अथवा छप्पनभोग (भोग सरे पश्चात) के दर्शन ही खुलते हैं.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.

राजभोग की अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता एवं सखड़ी में मीठी सेव, केसरयुक्त पेठा व पाँच-भात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात) अरोगाये जाते हैं.

छप्पनभोग दर्शन में प्रभु सम्मुख 25 बीड़ा सिकोरी (सोने का जालीदार पात्र) में रखे जाते है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

श्रीवल्लभ श्रीवल्लभ श्रीवल्लभ मुख जाके l

सुन्दर नवनीत के प्रिय आवत हरि ताही के हिय

जन्म जन्म जप तप करि कहा भयो श्रम थाके ll 1 ll

मन वच अध तूल रास दाहन को प्रकट अनल पटतरको

सुरनर मुनि नाहिन उपमा के l

‘छीतस्वामी’ गोवर्धनधारी कुंवर आये सदन प्रकट भये

श्रीविट्ठलेश भजन को फल ताके ll 2 ll

साज – श्रीजी में आज लाल आधारवस्त्र (Base) पर सुनहरी ज़री के बूटों के ज़रदोज़ी के काम (Work) वाली तथा श्याम आधारवस्त्र के ऊपर सुनहरी ज़री की पुष्प-लता की सुन्दर सज्जा वाले हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी में आज सुनहरी ज़री का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा एवं ऊर्ध्वभुजा की ओर रुपहली ज़री का अंतवर्ती पटका धराया जाता है. श्वेत एवं सुनहरी ज़री के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. उत्सववत हीरा की प्रधानता के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर रुपहली ज़री के बीच के दुमाला के ऊपर पन्ना का सिरपैंच (रूप-चौदस को आवे वह), सुनहरी जमाव की बीच की चन्द्रिका (काशी की), एक कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.

आज चोटीजी नहीं धराई जाती हैं.

कली, कस्तूरी आदि सब माला धरायी जाती है. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

हीरा के वेणुजी एवं हीरा व पन्ना के वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट काशी का एवं गोटी कूदती हुई गायों की आती हैं.

आरसी शृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में आरसी सोना के डांडी की आती है.


ree

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर दिए जाते हैं. श्रीकंठ में छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. दुमाला बड़ा नहीं किया जाता और लूम-तुर्रा भी नहीं धराये जाते.

 
 
 

Comments


© 2020 by Pushti Saaj Shringar.

bottom of page