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व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण त्रयोदशी (द्वितीय)

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण त्रयोदशी (द्वितीय)

Monday, 18 November 2025


मेघश्याम साटन के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर गोल चंद्रिका के श्रृंगार


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : टोडी)


आये अलसाने लाल जोयें हम सरसाने अनत जगे हो भोर रंग राग के l

रीझे काहू त्रियासो रीझको सवाद जान्यो रसके रखैया भवर काहू बाग़ के ll 1 ll

तिहारो हु दोस नाहि दोष वा त्रिया को जाके रससो रस पागे जाग के l

‘तानसेन’ के प्रभु तुम बहु नायक आते जिन बनाय सांवरो पेच पाग के ll 2 ll


साज – श्रीजी में आज पीले रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज पीले रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. गुलाबी के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर मेघश्याम गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में कर्णफूल की एक जोड़ी धराये जाते हैं.

लाल एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.

गुलाबी मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट मेघश्याम व गोटी चाँदी की आती है.



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संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

 
 
 

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