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व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण द्वादशी (प्रथम)

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण द्वादशी (प्रथम)

Saturday, 09 December 2023

उत्पति एकादशी व्रत

बात हिलगही कासों कहिये।

सुनरी सखी बिवस्था या तनकी समझ समझ मन चुप करी रहिये ॥१॥

मरमी बिना मरम को जाने यह उपहास जग जग सहिये।

चतुर्भुजप्रभु गिरिधरन मिले जबही, तबही सब सुख पहिये ॥२॥

आज का श्रृंगार ऐच्छिक है परन्तु किरीट, खोंप, सेहरा अथवा टिपारा धराया जाता है. रुमाल एवं गाती का पटका भी धराया जाता है. श्रृंगार जड़ाव का धराया जाता है.

आज की सेवा श्री ललिता जी की सखी कुंजरी जी की ओर से होती है.

आज श्रीजी को कत्थई रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा, फ़िरोज़ी छापा का गाती का रुमाल (पटका) एवं श्रीमस्तक पर फ़िरोज़ा के टीपारा का साज धराया जाएगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

बैठे हरि राधा संग कुंजभवन अपने रंग

कर मुरली अधर धरे सारंग मुख गाई ।

मोहन अति ही सुजान परम चतुर गुण निधान जानबुझ एक तान चूक के बजाई ।। १ ।।

प्यारी जब गह्यो बीन सकल कला गुन प्रवीन अति नवीन रूप सहित वही तान सूनाई ।

वल्लभ गिरिधरनलाल रीझ दई अंकमाल

कहत भले भले लाल सुंदर सुखदाई ।।२।।

साज – श्रीजी में आज कत्थाई रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज कत्थाई रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं एवं फ़िरोज़ी छापा का गाती का रुमाल (पटका) धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र पिले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हारे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर फ़ीरोज़ा के टिपारा की टोपी के ऊपर मध्य में मोर-चन्द्रिका, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.

आज चोटीजी नहीं धरायी जाती हैं.

श्रीकंठ में कस्तूरी, कली एवं कमल माला माला धरायी जाती है. गुलाब के पुष्पों की एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरियाँ के वेणुजी और दो (एक सोना का) वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट कत्थई व गोटी चाँदी की बाघ-बकरी की आती है.


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संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर फ़ीरोज़ा का टीपारा एवं रूमाल बड़ा करके छज्जेदार पाग धराई जाती हैं. लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

 
 
 

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