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व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण सप्तमी

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण सप्तमी

Friday, 26 November 2021


नाथद्वारा के युगपुरुष नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराजश्री का प्राकट्योत्सव


विशेष – आज वर्तमान पूज्य तिलकायत गौस्वामी श्री राकेशजी महाराजश्री के पितृचरण एवं नाथद्वारा के इतिहास के युगपुरुष कहलाने वाले नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराज श्री का प्राकट्योत्सव है.(विस्तुत विवरण अन्य पोस्ट में)


आज की सेवा श्री रसालिकाजी एवं श्री ललिताजी के भाव से होती है.


श्रीजी का सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.


आज चारों दर्शनों (मंगला, राजभोग, संध्या-आरती व शयन) में आरती थाली में होती है.


आज से मंगला भोग में श्रीजी को गेहूं के आटे (चून) का सीरा का डबरा डोलोत्सव तक प्रतिदिन नियम से अरोगाया जाता है.


श्रीजी को नियम के पतंगी साटन के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर केसरी रंग की छोरवाली गोल पाग के ऊपर गोल-चंद्रिका धरायी जाती है. उत्सव की बधाई के रूप में बाललीला के पद गाये जाते हैं.


सामान्यतया सभी बड़े उत्सवों पर प्रभु को भारी श्रृंगार धराया जाता है परन्तु आपश्री का भाव था कि भारी आभरण से प्रभु को श्रम होगा अतः आपश्री ने आपके जन्मदिवस पर प्रभु को हल्का श्रृंगार धरा कर लाड़ लडाये.


गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में प्रभु को केशरयुक्त जलेबी के टूक, दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व चार फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.


राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता और सखड़ी में केसरयुक्त पेठा, मीठी सेव व छःभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात और नारंगी भात) आरोगाये जाते हैं.


सामान्यतया उत्सवों पर पांचभात ही अरोगाये जाते हैं. छठे भात के रूप में (नारंगी भात) शीतकाल में कुछेक विशेष दिनों में ही अरोगाये जाते हैं.


श्रृंगार से राजभोग के भोग आवे तब तक पलना के भरतकाम वाली पिछवाई धरायी जाती ह.


कीर्तन – (राग : सारंग)


श्रीवल्लभनंदन रूप अनुप स्वरूप कह्यो न जाई ।

प्रगट परमानंद गोकुल बसत है सब जगत को जो सुखदाई ।।१।।

भक्ति-मुक्ति देत सबको निजजन को कृपा प्रेम बरखत अधिकाई ।

सुखमय सुखद एक रसना कहांलो वरनौ गोविंद बलि जाई ।।२।।


श्रृंगार दर्शन –


साज – आज श्रीजी में केसरी साटन की सलमा-सितारा के भरतकाम वाली पिछवाई साजी जाती है जिसमें नन्द-यशोदा प्रभु को पलना झुला रहे हैं और पलने के ऊपर मोती का तोरण शोभित है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज पतंगी रंग की साटन का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी वाला सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. पीला मलमल का रुपहली ज़री की किनारी वाला कटि-पटका धराया जाता है. मोजाजी भी पीले मलमल के एवं मेघश्याम रंग के ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर पीले मलमल की छोरवाली (ऊपर-नीचे छोर) गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच की जगह हीरा का शीशफूल पर हीरा की दो तुर्री, घुंडी की लूम एवं चमक की गोल-चन्द्रिका धरायी जाती हैं. अलख धराये जाते हैं.

श्रीकंठ में हीरा की बद्दी व एक पाटन वाला हार धराया जाता है.

श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी सुन्दर थागवाली एक मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में द्वादशी वाले वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट उत्सव का, गोटी कांच की व आरसी शृंगार में लाल मख़मल की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है

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