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व्रज - वैशाख कृष्ण अमावस्या (चतुर्दशी क्षय)

व्रज - वैशाख कृष्ण अमावस्या (चतुर्दशी क्षय)

Tuesday, 27 April 2025


मल्लकाछ टिपारा का श्रृंगार


विशेष – आज का श्रृंगार नियम का नहीं है परन्तु सामान्यतया आज के दिन धराया जाता है.


श्री महाप्रभुजी के उत्सव पश्चात बाललीला के चार श्रृंगार धराये जाते हैं और इन चार दिन सभी समां में बाल-लीला के कीर्तन ही गाये जाते हैं.


आज यह श्रृंगार बाललीला के भाव से धराया जा रहा है.

मल्लकाछ (मल्ल एवं कच्छ) दो शब्दों से बना है और ये एक विशेष पहनावा है जो आम तौर पर पहलवान मल्ल (कुश्ती) के समय पहना करते हैं.

सामान्यतया वीर-रस का यह श्रृंगार पराक्रमी प्रभु की चंचलता प्रदर्शित करने की भावना से धराया जाता है.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


गोविंद लाडिलो लडबोरा l

अपने रंग फिरत गोकुलमें श्यामवरण जैसे भोंरा ll 1 ll

किंकणी कणित चारू चल कुंडल तन चंदन की खोरा l

नृत्यत गावत वसन फिरावत हाथ फूलन के झोरा ll 2 ll

माथे कनक वरण को टिपारो ओढ़े पिछोरा l

‘परमानंद’ दास को जीवन संग दिठो नागोरा ll 3 ll


साज – आज श्रीजी में माखनचोरी लीला के सुन्दर चित्रांकन से सुसज्जित सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है जिसमें कृष्ण-बलराम अपने मित्रों के साथ मल्लकाछ-टिपारा का श्रृंगार धराये माखन चोरी कर रहे हैं. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को गुलाबी मलमल का मल्लकाछ एवं दो पटका धराये जाते हैं. दोनों वस्त्र रुपहली तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) मध्यम श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर टिपारा का साज (गुलाबी रंग की टिपारा की टोपी के ऊपर मध्य में मोरशिखा और दोनों ओर दोहरा कतरा) तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं.

हांस, त्रवल, पायल आदि धराये जाते हैं. श्रीकंठ में कमल माला धरायी जाती है. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, झीने लहरियाँ के वेणुजी तथा दो वेत्रजी धराये जाते हैं.


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पट गुलाबी व गोटी बाघ-बकरी की आती है.

 
 
 

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