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व्रज - वैशाख कृष्ण अष्टमी (सप्तमी क्षय)

व्रज - वैशाख कृष्ण अष्टमी (सप्तमी क्षय)

Friday, 01 May 2024

पीले मलमल के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर ग्वाल पगा पर पगा चंद्रिका के शृंगार

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : नट)

नातर लीला होती जूनी।

जो पै श्रीवल्लभ प्रकट न होते वसुधा रहती सूनी।।१।।

दिनप्रति नईनई छबि लागत ज्यों कंचन बिच चूनी।

सगुनदास यह घरको सेवक जस गावत जाको मुनी।।२।।

साज – श्रीजी में आज पीले मलमल की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को पीले मलमल का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित हो यही ते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) माणक के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर पीले रंग के ग्वाल पगा के ऊपर सिरपैंच, पगा चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में लोलक बिंदी धराये जाते हैं.

श्रीकंठ में कमल माला ओर चैत्री गुलाब के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, फ़ीरोज़ा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.


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पट पिला व गोटी बाघ बकरी की आती है.

 
 
 

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