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व्रज - वैशाख कृष्ण द्वितीया

व्रज - वैशाख कृष्ण द्वितीया

Friday, 26 April 2024

पचरंगी लहरियाँ के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर गोल चंद्रिका के शृंगार

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

देखो अद्भुत अविगतकी गति कैसो रूप धर्यो है हो ।

तीन लोक जाके उदर बसत है सो सुप के कोने पर्यो है ।।१।।

नारदादिक ब्रह्मादिक जाको सकल विश्व सर साधें हो ।

ताको नार छेदत व्रजयुवती वांटि तगासो बाँधे ।।२।।

जा मुख को सनकादिक लोचत सकल चातुरी ठाने ।

सोई मुख निरखत महरि यशोदा दूध लार लपटाने ।।३।।

जिन श्रवनन सुनी गजकी आपदा गरुडासन विसराये ।

तिन श्रवननके निकट जसोदा गाये और हुलरावे ।।४।।

जिन भूजान प्रहलाद उबार्यो हरनाकुस ऊर फारे ।

तेई भुज पकरि कहत व्रजगोपी नाचो नैक पियारे ।।५।।

अखिल लोक जाकी आस करत है सो माखनदेखि अरे है ।

सोई अद्भुत गिरिवरहु ते भारे पलना मांझ परे है ।।६।।

सुर नर मुनि जाकौ ध्यान धरत है शंभु समाधि न टारी ।

सोई प्रभु सूरदास को ठाकुर गोकुल गोप बिहारी ।।७।।

साज – श्रीजी में आज पचरंगी लहरियाँ की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को पचरंगी लहरियाँ का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र केसरी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) फ़ीरोज़ा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर पचरंगी लहरियाँ की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.

चैत्री गुलाब के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, स्याम मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.


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पट लाल व गोटी मीना की आती है.

 
 
 

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