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व्रज - वैशाख कृष्ण सप्तमी

व्रज - वैशाख कृष्ण सप्तमी

Sunday, 20 April 2025


पीले मलमल के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर सीधी चंद्रिका के शृंगार


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : नट)


नातर लीला होती जूनी।

जो पै श्रीवल्लभ प्रकट न होते वसुधा रहती सूनी।।१।।

दिनप्रति नईनई छबि लागत ज्यों कंचन बिच चूनी।

सगुनदास यह घरको सेवक जस गावत जाको मुनी।।२।।


साज – श्रीजी में आज पीले मलमल की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज प्रभु को पीले मलमल का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) माणक के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर पीले रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, सीधी चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.

श्रीकंठ में कमल माला ओर चैत्री गुलाब के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, फ़िरोज़ा के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.


पट पिला व गोटी मीना की आती है.

 
 
 

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