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व्रज - वैशाख शुक्ल द्वादशी

व्रज - वैशाख शुक्ल द्वादशी

Tuesday, 02 May 2023

शरबती रंग का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर ग्वाल पगा पर मोरशिखा के श्रृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को शरबती रंग का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर ग्वाल पगा और पगा चंद्रिका (मोरशिखा) का शृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

सूर आयो सिर पर छाया आई पायनतर

पंथी सब झूक रहे देख छांह गहरी l

धंधीजन धंध छांड रहेरी धूपन के लिये

पशु-पंछी जीव जंतु चिरिया चूप रही री ll 1 ll

व्रज के सुकुमार लोग दे दे किंवार सोये

उपवन की ब्यार तामें सुख क्यों न लहेरी l

‘सूर’ अलबेली चल काहेको डरात है

महा की मधरात जैसी जेठ की दुपहरी ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में शरबती रंग की मलमल की रुपहली तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को शरबती मलमल का पिछोड़ा धराया जाता हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है.

मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर शरबती रंग के ग्वाल पगा पर मोती की लड़, पगा चंद्रिका (मोरशिखा) एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.

श्रीकर्ण में लोलकबिंदी धराये जाते हैं.

श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, चाँदी के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.


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पट ऊष्णकाल का व गोटी बाघ बकरी की आती है.

 
 
 

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