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व्रज - श्रावण कृष्ण द्वादशी

व्रज - श्रावण कृष्ण द्वादशी

Tuesday, 22 July 2025


हो झुलत ललित कदंब तरे।

पियको पीत पट प्यारी को लहेरिया रमकत खरे खरे।।१।।

एक भुजा दांडी गहि लीनी दूजी भुजा अंस धरे।

लांबे झोटा देत है प्यारी पुरषोत्तम अंक भरे।।२।।


मेवाड़ के प्रसिद्ध भोपालशाही लहरियाँ के वस्त्र एवं मुकुट और गोल-काछनी के अद्भुत शृंगार


आज श्रीजी को नियम का मुकुट और गोल-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है. आज धरायी जाने वाली काछनी को मोर-काछनी भी कहा जाता है. इसे मोर-काछनी इसलिए कहा जाता है क्योंकि आकार में यह खुले पंखों के साथ नृत्यरत मयूर (मोर) का आभास कराती है.


आज के अतिरिक्त मुकुट के साथ गोल-काछनी का श्रृंगार केवल शिवरात्रि के दिन धराया जाता है यद्यपि उस दिन काछनी का रंग अंगूरी (अंगूर जैसा हल्का हरा) होता है.


आज श्रीजी में नियम से मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है.

प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है.


अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में मुकुट नहीं धराया जाता इस कारण देव-प्रबोधिनी से फाल्गुन कृष्ण सप्तमी (श्रीजी का पाटोत्सव) तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक मुकुट नहीं धराया जाता.


जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है. काछनी के घेर में भक्तों को एकत्र करने का भाव है.


जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत रंग के होते हैं. ये श्वेत वस्त्र चांदनी छटा के भाव से धराये जाते हैं.


जिस दिन मुकुट धराया जाये उस दिन विशेष रूप से भोग-आरती में सूखे मेवे के टुकड़ों से मिश्रित मिश्री की कणी अरोगायी जाती है.


आज संध्या-आरती के दर्शन में श्रीजी में नियम का सोने के हिंडोलने का मनोरथ होता है.

श्रीजी के सम्मुख डोलतिबारी में श्री मदनमोहन जी सोने के हिंडोलने में झूलते हैं. श्री मदनमोहनजी के सभी वस्त्र एवं श्रृंगार श्रीजी को धराये आज के श्रृंगार जैसे ही होते हैं. श्री बालकृष्ण लालजी उनकी गोदी में विराजित होकर झूलते हैं


विक्रम संवत 2014 में नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराजश्री ने आज के दिन मेवाड़ की महारानीजी के आग्रह पर उनके द्वारा जमा करायी गयी धनराशि से सोने के हिंडोलने का मनोरथ किया जो अब स्थायी रूप से प्रतिवर्ष इस दिन होता है.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : मल्हार)


अरी इन मोरन की भांत देख नाचत गोपाला ।

मिलवत गति भेदनीके मोहन नटशाला ।।१।।

गरजत धन मंदमद दामिनी दरशावे ।

रमक झमक बुंद परे राग मल्हार गावे ।।२।।

चातक पिक सधन कुंज वारवार कूजे ।

वृंदावन कुसुम लता चरण कमल पूजे ।।३।।

सुरनर मुनि कामधेनु कौतुक सब आवे ।

वारफेर भक्ति उचित परमानंद पावे ।।४।।


साज – साज- श्रीजी में आज वर्षा ऋतु में श्री कृष्ण व बलराम जी के व्रजभक्तों संग वनविहार व बालसखाओं संग क्रीड़ा के सुन्दर चित्रांकन नृत्य की मुद्रा में वाली पिछवाई धरायी जाती है.

गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज सूथन, मोरकाछनी (गोल-काछनी) एवं रास पटका धराया जाता है. सभी वस्त्र पीले भोपालशाही लहरिया के और सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं.

ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी (चिकन) के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर सिलमा सितारा का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.

आज चोटीजी नहीं धरायी जाती है.

कली, कस्तूरी एवं कमल माला धरायी जाती है.

श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.

भाभीजी वाले वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं.


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पट केसरी व गोटी मोर वाली आती है.

 
 
 

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