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व्रज – श्रावण शुक्ल षष्ठी

व्रज – श्रावण शुक्ल षष्ठी

Wednesday, 03 August 2022

गुलाबी मलमल का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर ग्वाल पगा पर पगा चंद्रिका (मोरशिखा) के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को गुलाबी रंग का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर ग्वाल पगा पर पगा चंद्रिका (मोरशिखा) का शृंगार धराया जायेगा.

संध्या-आरती में श्री मदनमोहन जी जर्दोज़ी के हिंडोलने में झूलते हैं. उनके सभी वस्त्र श्रृंगार श्रीजी के जैसे ही होते हैं. आज श्री बालकृष्णलाल जी भी उनकी गोदी में विराजित हो झूलते

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : मल्हार)

कारे कारे बदरा देस देस ते उलरे श्याम बरन सब रुख भयो l

मनो हो मदन मिल्यो मदन मोहन सों करत ओट महा सघन तिमिर के बासन ननरो ll 1 ll

मोरन की सोर अति पिक को पपैया कुहूकात नुपूर धुन अलसे धूनतयो l

‘धोंधी’ के प्रभु बोली चली तहां जहाँ पातन की सेज करी पातन छयो ll 2 ll

साज – श्रीजी में आज गुलाबी रंग की मलमल पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज गुलाबी मलमल का रूपहरी किनारी का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छेड़ान का श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग के ग्वालपाग (पगा) के ऊपर मोती की लड़, सुनहरी चमक (जमाव) की चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में लोलकबंदी लड़ वाले कर्णफूल धराये जाते हैं.

आज कमल के फूल की माला धरायी जाती हैं.

श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी व कमल के पुष्प की मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में एक कमल की कमलछड़ी, फ़िरोज़ा के वेणुजी एवं दो (एक सोना का) वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट राग रंग का व गोटी बाघ बकरी की आती हैं.


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