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व्रज -श्रावण शुक्ल सप्तमी

व्रज -श्रावण शुक्ल सप्तमी

Thursday, 31 July 2025


श्रीजी में बगीचा उत्सव


आज धनक (मोढडाभात) के लहरिया के सुथन, काछनी व वन-विहार का भाव से प्रभु को गाती का पटका धराया जायेगा.


आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनोहर (इलायची, जलेबी) के लड्डू एवं दूधघर में सिद्ध केशरयुक्त बासोंदी (रबड़ी) की हांड़ी अरोगायी जाती है.

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है

व सखडी में मीठी सेव, केसर युक्त पेठा अरोगाया जाता हैं.


कल श्रावण शुक्ल अष्टमी को श्री नवनीतप्रियाजी महाप्रभुजी की बैठक में स्थित बगीचे में पधारेंगे.

श्रीजी को भी मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जायेगा. परन्तु कल और आज में यह अंतर होगा कि कल रास के भाव का रास-पटका प्रभु को धराया जायेगा.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : मल्हार)


ऐरी यह नागर नंदलाल कुंवर मोरन संग नाचे l

कटि तटपट किंकिणी कलनूपुर रुन झुन करे नृत्य करत चपल चरण पात घात सांचे ll 1 ll

उदित मुदित सघन गगन घोरत घन दे दे भेद कोकिला कलगान करत पंचम स्वर वांचे l

‘छीतस्वामी’ गोवर्धननाथ साथ विरहत वर विलास वृंदावन प्रेमवास यांचे ll 2 ll


साज – वर्षा ऋतु में बादलों की घटा छायी हुई है. इस समय कुंज के द्वार पर नृत्य करते मयूरों के चित्रांकन वाली पिछवाई आज श्रीजी में धरायी जाती है. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज लाल एवं पीले रंग के धनक (मोढडाभात) के लहरिया की सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, काछनी एवं गाती का पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद डोरीया के धराये जाते है.


श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा की प्रमुखता, मोती, माणक, पन्ना एवं जड़ाव सोने के आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर सोने का रत्नजड़ित, नृत्यरत मयूरों की सज्जा वाला मुकुट एवं मुकुट पर माणक का सिरपेंच एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.

श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.

आज नीचे पदक ऊपर हार माला धराए जाते हैं.

दो पाटन वाले हार धराए जाते हैं.

श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं.हास,त्रवल नहीं धराए जाते हैं.हीरा की बग्घी धरायी जाती हैं.

आज सभी समा में पुष्पों की माला एक एक ही धरायी जाती है.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट उत्सव का गोटी नाचते मोर की आती है.

आरसी श्रृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है.


जहाँ तहाँ बोलत मोर सुहाये,


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सावन रमण भवन वृंदावन घोर घोर घन आये.

 
 
 

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