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श्रीगुसांईजी की सेवक पाथो गूजरी की वार्ता

श्रीगुसांईजी की सेवक पाथो गूजरी की वार्ता


पाथो गूजरी आन्योर में रहती थी, एक दिन बेटा के लिए भोजन (छाक) ले जा रही थी, रास्ते में श्रीनाथजी ने उससे कहा -" ये दही - भात हम को दो । " उसने उसमें से दही - भात श्रीनाथजी को दिया, उन्होंने इसे आरोगा और इतने में ही शंखनाद हो गया । श्रीनाथजी बिना हाथ धोये ही मन्दिर में पधारे ।


श्री गुसांईजी ने उनके श्रीहस्त देखकर पूछा - "आज कहाँ आरोगे हैं ?"

श्री नाथजी ने कहा- "पाथो गूजरी से दही - भात लिया था ।"


उसी दिन श्रीगुसांईजी ने पोरिया से कहा - "पाथो गूजरी जब भी यहाँ आए, किवाड़ खोल दिया करो ।" जब श्रीनाथजी की आज्ञा होती, उसी दिन पाथो गूजरी आकर दही - भात आरोगा कर चली जाती थी ।


उसी दिन से श्रीगुसांईजी ने कुनवारा में मुख्य सामग्री दही भात की निर्धारित की ।

पाथो गूजरी ऐसी कृपा पात्र थी ।।

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