top of page
Search

श्रीहरिरायजी महाप्रभु

आज अश्विन कृष्ण ५ शिक्षासागर दिनतासागर श्री हरिरायजी महाप्रभुजी को प्रागट्य उत्सव। पुष्टिमार्ग में श्री वल्लभाचार्यजी के बाद श्री हरिरायजी दूसरे आचार्य हि जिन्हें 'महाप्रभु' कहा गया।

श्री हरिरायजी महाप्रभुजी पुष्टिमार्ग के सिद्धांत के अद्भुत अद्वितीय ग्रंथ शिक्षापत्र के रचयिता है। श्री हरिरायजी द्वितीय गृह के तिलकायत होने के बावजूद आपश्री के पुष्टिमार्ग के प्रति अनहद् योगदान के कारन आपश्री के उत्सव को पूरे पुष्टिमार्ग में महादान के मनोरथ स्वरुप मनाया जाता है। आपश्री के कारन अनेक राजाओं भी पुष्टि मार्ग के सेवक बने।


श्रीनाथजी का मंदिर नाथद्वारा में आपश्री के निर्देश अंतर्गत बनवाया गया।


श्री हरिरायजी महाप्रभुजी को सत्संग के प्रति ऐसा भाव था की वे जिस प्रकार मछली पानी के बिना नहीं रह सकती, वे सत्संग के बिना नहीं रह सकते। फिर भी आपश्री शिक्षापत्र में आज्ञा करते है कि "जो ये कलिकाल है सो महाविक्राल है, सत्संग मिले नहीं और दुःसंग मिले है।"


श्री हरिरायजी ने अपने अनुज श्री गोपेश्वरजी को जो पत्र लिखे, वो आज पुष्टि सिद्धांतों का सुदृढ़ दर्शन करवाते है, जिसे हम शिक्षापत्र कहते है। वैष्णव मात्र के हरेक लौकिक एवं अलौकिक प्रश्न के उत्तर शिक्षापत्र में निहित है।


श्री हरिरायजी की बात करें तब आपश्री द्वारा रचित वल्लभ साखी को भूला नहीं जा सकता। वल्लभ साखी से श्री महाप्रभुजी, श्री गुसांईंजी एवं पुष्टिमार्ग के प्रति हमारी श्रद्धा दृढ होती है।

श्रीहरिरायजी दिनतासागर है। श्री महाप्रभुजी के प्रति अपनी दीनता का भाव प्रगट करते हुए आपश्री के अनेक कीर्तन प्राप्त है। श्री हरिरायजी रचित बधाई, प्रभु की अनेक लीला के कीर्तन, दीनता, आश्रय, विनती के पद आज भी पुष्टिमार्गिय कीर्तन प्रणाली के अंतर्गत गाये जाते है।


सेवा करते समय अभिमान आवे तब श्री हरिरायजी को स्मरण करते ही समस्त अभिमान चकनाचूर हो जाता है। श्री हरिरायजी ने अपने अनेक भाषाओं में लिखे ग्रंथो से पुष्टि मार्ग के साहित्य को अलंकृत किया है।


श्रीहरिरायजी महाप्रभु के उत्सव की मंगल बधाई

ree

 
 
 

Comments


© 2020 by Pushti Saaj Shringar.

bottom of page