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व्रज - चैत्र शुक्ल द्वितीया

व्रज - चैत्र शुक्ल द्वितीया

Wednesday, 14 April 2021


मेष (सतुवा) संक्रांति


विशेष-आज मेष संक्रांति है जिसे पुष्टिमार्ग में सतुवा संक्रांति भी कहा जाता है.


भारतीय तिथियों का आकलन चंद्रमा की कलाओं के आधार पर किया जाता है और इसी कारण सभी उत्सव और त्यौहार भारतीय तिथियों के आधार पर मनाये जाते हैं परन्तु यह पर्व सूर्य के विभिन्न राशियों पर संक्रमण के आधार पर मनाया जाता है अतः सामान्यतया अंग्रेज़ी वर्ष की 13 या 14 अप्रेल को मनाया जाता है.

प्राचीन ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रतिमाह सूर्य का निरयण राशी परिवर्तन संक्रांति कहलाता है. इसके अनुसार सूर्यदेव आज मेष राशी में प्रवेश करते हैं. प्रतिमाह संक्रांति अलग-अलग वाहनों में, वस्त्र धारण कर, शस्त्र, भोज्य पदार्थ एवं अन्य पदार्थों के साथ आती है. यद्यपि सूर्य की 12 संक्रांतियां है परन्तु इनमें से चार (मेष, कर्क, तुला एवं मकर) संक्रांति महत्वपूर्ण है.


भारत में सामान्य लोग केवल मकर-संक्रांति के विषय में जानते हैं क्योंकि इस दिन दान-पुण्य किया जाता है परन्तु पुष्टिमार्ग में भी दो (मेष एवं मकर) संक्रांति को मान्यता दी गयी है.

मकर-संक्रांति 13 या 14 जनवरी एवं मेष-संक्रांति मंगलवार (चैत्र शुक्ल द्वितीया) रात्रि 2.48 पर आरम्भ होने से 14 अप्रेल को मनायी जायेगी.


श्रीजी में आज से रथयात्रा के दिन तक मगद (बेसन) के लड्डू नहीं अरोगाये जाते और इसके स्थान पर सतुवा के (चना दाल और जौ से निर्मित) लड्डू अरोगाये जाते हैं.


सतुवा उष्णकाल में विशेष लाभकारी सामग्री है. आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों में कई स्थानों पर उष्णकाल के प्रमुख खाद्य के रूप में इसका वर्णन है. छाछ के साथ इसका प्रयोग अत्यंत लाभकारी है. श्रीजी को यह सामग्री आज से रथयात्रा तक अरोगायी जाती है.


अनसखड़ी में सतुवा लड्डू के रूप में व सखड़ी में सतुवा थोड़ा आंशिक तरल रूप में अरोगाया जाता है.


सामान्यतया पुण्यकाल के आधार पर मेष संक्रांति मनायी जाती है. इस वर्ष मेष संक्रान्ति मंगलवार रात्रि 2.48 पर आरम्भ होने से पुण्यकाल आज सूर्योदय से मध्याह्न तक माना जायेगा सूर्य का मेष राशि में प्रवेश रात्रि को 2 बजकर 48 मिनिट से होगा इस लिए सूर्योदय 6.17 से दो घंटे तक अति मुख्य पुण्यकाल है अतः पुण्यकाल आज ही माना जायेगा.

श्रीजी मंदिर में शृंगार के दर्शन में उत्सव भोग रखे जायेंगे.

अष्ट प्रहर की सेवा करने वाले समस्त वैष्णव भी इसी प्रकार अपने सेव्य ठाकुरजी को सतुवा का भोग रखें एवं तत्पश्चात दान आदि कर सकते हैं.

अन्य वैष्णव आज शाम को शयन समय या कल सुबह सतुवा श्री ठाकुरजी को अरोगा सकते हैं.


उत्सव भोग में श्रीजी को सतुवा के गोद के (सामान्य से बड़े) नग, श्री नवनीतप्रियाजी, श्री विट्ठलनाथजी एवं श्री द्वारकाधीश प्रभु के घर से सिद्ध होकर आये सतुवा की सामग्री, दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांड़ी, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा एवं बीज-चालनी का नमकीन सूखे मेवे का भोग अरोगाया जाता है.


कल से प्रतिदिन राजभोग की सखड़ी में प्रभु को सीरा के रूप में सिद्ध घोला हुआ सतुवा अरोगाया जायेगा.


श्रीजी में आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है.

ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है.


मेरी जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को लाल रंग की धोती के ऊपर श्याम रंग के छापा के खुलेबंध के चाकदार वागा एवं चोली धराये जाते हैं.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


नयनन लागी हो चटपटी l

मदनमोहन पिय नीकसे द्वार व्है, शोभित पाग लटपटी ll 1 ll

दूर जाय फीर चितयेरी मो तन, नयन कमल मनोहर भृकुटी l

'गोविंद' प्रभु पिय चलत ललित गति, कछुक सखा अपनी गटी ll 2 ll


साज – आज श्रीजी में श्याम रंग के छापा की सुनहरी तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को लाल रंग की धोती के ऊपर श्याम रंग के छापा के खुलेबंध के चाकदार वागा एवं चोली धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लाल रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, जमाव का कतरा,तुर्री सुनहरी तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.

आज कमल माला धरावे.

श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, चाँदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. पट श्याम व गोटी चाँदी की आती है.

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