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व्रज - आषाढ़ शुक्ल द्वादशी

व्रज - आषाढ़ शुक्ल द्वादशी

Monday, 11 July 2022

श्वेत मलमल का आड़बंद एवं श्रीमस्तक पर गोल छोरवाली पाग के ऊपर श्वेत खंडेला (श्वेत मोरपंख का दोहरा क़तरा के शृंगार

विशेष – आज श्रीजी को नियम का आड़बंद व श्रीमस्तक पर गोल छोरवाली पाग के ऊपर श्वेत खंडेला (श्वेत मोरपंख का दोहरा कतरा) का श्रृंगार धराया जाता आज ऊष्णकाल में अंतिम बार आड़बंद धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : मल्हार)

हों इन मोरनकी बलिहारी l

जिनकी सुभग चंद्रिका माथे धरत गोवर्धनधारी ll 1 ll

बलिहारी या वंश कुल सजनी बंसी सी सुकुमारी l

सुन्दर कर सोहे मोहन के नेक हू होत न न्यारी ll 2 ll

बलिहारी गुंजाकी जात पर महाभाग्य की सारी l

सदा हृदय रहत श्याम के छिन हू टरत न टारी ll 3 ll

बलिहारी ब्रजभूमि मनोहर कुंजन की अनुहारी l

‘सूरदास’ प्रभु नंगे पायन अनुदिन गैया चारी ll 4 ll

साज – आज श्रीजी में श्वेत रंग के मलमल की बिना किनारी की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत रंग की मलमल का बिना किनारी का आड़बंद धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र नहीं धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. सर्व आभरण मोती के, श्रीमस्तक पर श्वेत मलमल की छोर वाली गोलपाग के ऊपर सिरपैंच, खंडेला (श्वेत मोरपंख का दोहरा कतरा)और बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में एक जोड़ी मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं. श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं एवं श्वेत पुष्पों की ही दो मालाजी हमेल की भांति भी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में चार कमल की कमलछड़ी, चाँदी के वेणुजी और एक वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट उष्णकाल का व गोटी छोटी हक़ीक की धरायी जाती हैं.

भक्तवत्सल प्रभु श्रीजी ने अपने सभी भक्तों को मान दिया है एवं अपनी कृपा से व्रज के सभी जीवमात्रों, पेड़-पौधों को कृतार्थ किया है.

श्री गोवर्धन पर्वत की चारों दिशाओं में 132 वन हैं जिनमें 96 सुगन्धित पुष्प एवं जीवोपयोगी वनौषधियां हैं जिनको कृतार्थ करने के भाव से कल श्रीजी को संध्या-आरती दर्शन में वनमाला धरायी जाएगी. यह वर्ष में केवल एक बार आषाढ़ शुक्ल चतुर्दशी को धरायी जाती है.

कल प्रभु को ऊष्णकाल में अंतिम बार परधनी धरायी जाएगी.


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