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व्रज - चैत्र कृष्ण नवमी

व्रज - चैत्र कृष्ण नवमी

Sunday, 23 March 2025


छप्पनभोग मनोरथ (बड़ा मनोरथ), गौशाला मनोरथ


सुनहरी फुलकशाही ज़री की गोल काछनी, श्रीमस्तक पर टिपारा का साज के शृंगार


आज श्रीजी में श्रीजी में किन्हीं वैष्णव द्वारा आयोजित छप्पनभोग का मनोरथ होगा.

नियम (घर) का छप्पनभोग वर्ष में केवल एक बार मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा को ही होता है. इसके अतिरिक्त विभिन्न खाली दिनों में वैष्णवों के अनुरोध पर श्री तिलकायत की आज्ञानुसार मनोरथी द्वारा छप्पनभोग मनोरथ आयोजित होते हैं.

इस प्रकार के मनोरथ सभी वैष्णव मंदिरों एवं हवेलियों में होते हैं जिन्हें सामान्यतया ‘बड़ा मनोरथ’ कहा जाता है.

बड़ा मनोरथ के भाव से श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.


आज दो समय की आरती थाली की आती हैं.


मणिकोठा, डोल-तिबारी, रतनचौक आदि में छप्पनभोग के भोग साजे जाते हैं अतः श्रीजी में मंगला के पश्चात सीधे राजभोग अथवा छप्पनभोग (भोग सरे पश्चात) के दर्शन ही खुलते हैं.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.

राजभोग की अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता एवं सखड़ी में मीठी सेव, केसरयुक्त पेठा व पाँच-भात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात) अरोगाये जाते हैं.


छप्पनभोग दर्शन में प्रभु सम्मुख 25 बीड़ा सिकोरी (सोने का जालीदार पात्र) में रखे जाते है.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


मदन गोपाल गोवर्धन पूजत l

बाजत ताल मृदंग शंखध्वनि मधुर मधुर मुरली कल कूजत ll 1 ll

कुंकुम तिलक लिलाट दिये नव वसन साज आई गोपीजन l

आसपास सुन्दरी कनक तन मध्य गोपाल बने मरकत मन ll 2 ll

आनंद मगन ग्वाल सब डोलत ही ही घुमरि धौरी बुलावत l

राते पीरे बने टिपारे मोहन अपनी धेनु खिलावत ll 3 ll

छिरकत हरद दूध दधि अक्षत देत असीस सकल लागत पग l

‘कुंभनदास’ प्रभु गोवर्धनधर गोकुल करो पिय राज अखिल युग ll 4 ll


वस्त्र – श्रीजी को आज सुनहरी फुलकशाही ज़री का सूथन, दोनों काछनी एवं मेघश्याम दरियाई वस्त्र की चोली धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं. काछनी गोल धरायी जाती हैं.


श्रृंगार - आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. फ़िरोज़ा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर टिपारा का साज जिसमें सुनहरी फुलकशाही ज़री के टिपारा के ऊपर मध्य में मोरपंख, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में जड़ाव मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मीना की चोटीजी धरायी जाती है.

श्रीकंठ में कली, कस्तूरी व कमल माला धरायी जाती है.

गुलाब के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लहरियाँ के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट सुनहरी एवं गोटी मीना की आती है.



संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण एवं दोनो काछनी बड़ी करके चाकदार बागा धराये जाते हैं. शयन दर्शन में श्रीमस्तक पर टीपारा रहे लूम-तुर्रा नहीं आवे.

 
 
 

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