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व्रज - चैत्र शुक्ल चतुर्थी (तृतीया क्षय)

व्रज - चैत्र शुक्ल चतुर्थी (तृतीया क्षय)

Tuesday, 01 April 2025


रंगीली तीज गनगौर आज चलो भामिनी कुंज छाक लै जैये।

विविध भांति नई सोंज अरपि सब अपने जिय की तृपत बुझैये॥१॥

लै कर बीन बजाय गाय पिय प्यारी जेंमत रुचि उपजैये।

कृष्णदास वृषभानु सुता संग घूमर दै दै नंदनंद रिझैये॥२॥


द्वितीय (हरी) गणगौर


विशेष – आज हरी गणगौर है. आज की गणगौर चन्द्रावलीजी के भाव की है अतः श्रीजी को नियम के पंचरंगी लहरिया वस्त्र धराये जाते हैं.


पहली तीनों गणगौरों (चूंदड़ी, हरी व गुलाबी) में रात्रि के अनोसर में श्रीजी को सूखे मेवे (बादाम, पिस्ता, काजू, किशमिश, चिरोंजी आदि), खसखस, मिश्री की मिठाई के खिलौने, ख़ासा भण्डार में सिद्ध मेवा-मिश्री के लड्डू, माखन-मिश्री आदि से सज्जित थाल अरोगाया जाता है.


कीर्तन – (राग : सारंग)


बैठे हरि राधा संग कुंजभवन अपने रंग

कर मुरली अधर धरे सारंग मुख गाई l

मोहन अति ही सुजान परम चतुर गुन निधान

जान बुझ एक तान चूकके बजाई ll 1 ll

प्यारी जब गह्यो बीन सकल कला गुन प्रवीन

अति नवीन रूप सहित, वही तान सूनाई ll 2 ll

‘वल्लभ’ गिरिधरन लाल रिझ दई अंकमाल

कहत भले भले जु लाल सुंदर सुखदाई ll 3 ll


साज – आज श्रीजी में एक ओर श्रीकृष्ण एवं दूसरी ओर श्रीबलरामजी के साथ घूमर नृत्य करती व्रजललनाओं (गोपियों) और गणगौर के सुन्दर चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को पंचरंगी लहरिया का सूथन, चोली तथा खुलेबंद के चाकदार वागा धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र सफ़ेद डोरिया के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर पंचरंगी लहरिया की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, पन्ना की सीधी चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में पन्ना के दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.

श्रीकंठ में त्रवल के स्थान पर पन्ना का कंठा धराया जाता है.

गुलाबी एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लहरिया के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक स्वर्ण का) धराये जाते हैं.


पट हरा व गोटी लहरिया की आती है.

 
 
 

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