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व्रज - चैत्र शुक्ल नवमी

व्रज - चैत्र शुक्ल नवमी

Sunday, 10 April 2022


नौमी चैत की उजियारी ।

दसरथ के गृह जनम लियौ है मुदित अयोध्या नारी ll 1 ll

राम लच्छमन भरत सत्रुहन भूतल प्रगटे चारी l

ललित विलास कमल दल लोचन मोचन दुःख सुख कारी ll 2 ll

मन्मथ मथन अमित छबि जलरुह नील बसन तन सारी l

पीत बसन दामिनी द्युति बिलसत दसन लसत सित भारी ll 3 ll

कठुला कंठ रत्न मनि बघना धनु भृकुटी गति न्यारी l

घुटुरुन चलत हरत मन सबको ‘तुलसीदास’ बलिहारी ll 4 ll


रामनवमी


विशेष – आज मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम का जन्मदिवस (रामनवमी) है.

पुष्टिमार्ग में भगवान विष्णु के सभी दस अवतारों में से चार अवतारों (श्रीकृष्ण, श्रीराम, श्रीनृसिंह एवं श्रीवामन) को मान्यता दी है इस कारण इन चारों अवतारों के जन्म दिवस को जयंती के रूप में मनाया जाता है एवं इन चारों जयंतियों को उपवास व फलाहार किया जाता है.

जयंती उपवास की यह भावना है कि जब प्रभु जन्म लें अथवा हम प्रभु के समक्ष जाएँ तब तन, मन, वचन एवं कर्म से शुद्ध हों.

प्राचीन वेदों में भी कहा गया है कि उपवास से तन, मन, वचन एवं कर्म की शुद्धि होती है.


भगवान विष्णु के दशावतारों में से श्री महाप्रभुजी ने केवल चार अवतारों को ही क्यों मान्यता दी है.

इसका उत्तर यह है कि भगवान विष्णु के दस अवतारों में ये चारों अवतार प्रभु ने नि:साधन भक्तों पर कृपा हेतु लिए थे अतः इनकी लीला पुष्टिलीला हैं. पुष्टि का एक शाब्दिक अर्थ कृपा भी है.


ऊष्ण प्रकृति के होने के कारण आज से प्रभु को सभी प्रकार के जमीकंद (रतालू, सूरण, अरबी और शकरकंद आदि) भी नहीं अरोगाये जाते. ये जमीकंद भी आगामी विजयदशमी से पुनः अरोगाये जाने प्रारंभ होंगे.


सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

गेंद, चौगान व दिवला सभी सोने के आते हैं.

आज दिनभर झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. सभी समय आरती थाल में की जाती है.


मंगला दर्शन पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.


आज श्रीजी में जन्माष्टमी के दिन धरायी जाने वाली लाल पिछवाई साजी जाती है. इसके अतिरिक्त आज प्रभु को नियम के केसरी जामदानी के खुलेबंद के चाकदार वस्त्र और श्रीमस्तक पर कुल्हे के ऊपर पांच मोरपंख की चंद्रिका की जोड़ धरायी जाती है.


गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू अरोगाये जाते हैं. इसके अतिरिक्त प्रभु को दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी भी अरोगायी जाती


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


आज अयोध्या प्रगटे राम।

दशरथ वंश उदय कुल दीपक शिव विरंची मुनि भयो विश्राम।।१।।

घर घर तोरन वंदनमाला मोतिन चौक पुरे निज धाम।

परमानंददास तिहि अवसर, बंदीजन के पूरत काम।।२।।

साज - श्रीजी में आज लाल दरियाई की बड़े लप्पा की सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है.

यही पिछवाई जन्माष्टमी पर आती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र - आज श्रीजी को केसरी जामदानी के चोली तथा खुलेबंद के (तनी बाँध के धराये जाते हैं) चाकदार वागा धराये जाते हैं. सूथन लाल छापा का धराया जाता हैं.सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र श्वेत जामदानी के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा की प्रधानता सहित एवं जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर केसरी जामदानी की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चंद्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर हीरा एवं माणक के शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में उत्सव के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. उत्सव की हीरा की चोटी धरायी जाती है.

बाजु, पोची, पान हीरा माणक के धराये जाते हैं.

नीचे पदक ऊपर हांस, त्रवल, बघनखा,दो हालरा आदि धराये जाते हैं.

श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं.

चैत्री गुलाब के पुष्पों की सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हीरे के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते है.

पट एवं गोटी जड़ाऊ स्वर्ण की आते हैं.

आरसी शृंगार में चार झाड़ की व राजभोग में सोना की डांडी की दिखाई जाती है.

आज मोती का कमल धराया जाता हैं.

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