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व्रज - चैत्र शुक्ल पूर्णिमा

व्रज - चैत्र शुक्ल पूर्णिमा

Saturday, 12 April 2025


पूरी पूरी पूरनमासी पूर्यो पूर्यो शरदको चन्दा।

पूर्यो है मुरली स्वर केदारो, कृष्ण कला संपूरन भामिनी रास रच्यो सुखकंदा।।१।।

तान मान गति मोहन सोहे कहियत औरहि मन मोहंदा।

नृत्य करत श्रीराधा प्यारी नचवत आप बिहारी ऊदघत थेई थेई थुंगन छंदा।।२।।

मन आकर्षि लियो व्रजसुंदरी जय जय रुचिर गति मन्दा।

सखी आसीस देत हरिवंश तैसेई विहरत श्रीवृंदावन कुंवरि कुंवर नंदनंदा।।३।।


विशेष – आश्विन शुक्ल पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा) से चैत्र शुक्ल पूर्णिमा की रास की छः मास की रात्रि आज पूर्ण होने से आज रासोत्सव मनाया जाता है.

कुछ पुष्टिमार्गीय वैष्णव मंदिरों में आज शरद उत्सव मनाया जाता है और शरद पूर्णिमा को अरोगायी जाने वाली सामग्रियां अरोगायी जाती है यद्यपि श्रीजी में ऐसा सेवाक्रम नहीं होता है.


श्रीजी में आज रास की चार सखी के भाव के चित्रांकन की पिछवाई आती है. नियम का रास के भाव का मुकुट और गुलाबी काछनी का श्रृंगार धराया जाता है.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


ऐसी बंसी बाजी बनघनमें व्यापी रही घ्वनि महामुनिनकी समाधी लागी l

भयो ब्रह्मनाद ऊठत आह्लाद जहाँ तहाँ व्रज घोष रत्न वृंद भये सब त्यागी ll 1 ll

रास आदि अनेक लीला रसभाव पूरित मूरति मुखारविंद छबि धरे विरह अनंग जागी l

तब वेणुनाद द्वार अब श्रीलक्ष्मणभट भूपकुमार ‘पद्मनाभ’ दैवोद्धार अर्थ त्यागी ll 2 ll


साज – आज श्रीजी में रास रमती चार गोपियों के चित्रांकन की सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज गुलाबी मलमल का सूथन, काछनी, रास-पटका एवं श्याम मलमल की चोली धरायी जाती हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी (चिकन) के धराये जाते हैं.


श्रृंगार - श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर हीरा का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.

बायीं ओर हीरा की शिखा (चोटी) धरायी जाती है.

श्रीकंठ में कली, कस्तूरी व कमल माला धरायी जाती है. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लहरिया के हीराजड़ित वेणुजी एवं दो वेत्रजी (लहरिया व सोने के) धराये जाते हैं.

पट गुलाबी व गोटी नाचते मोर की आती है.


संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण, मुकुट व टोपी बड़े किये जाते हैं व श्रीमस्तक पर गुलाबी गोल-पाग धरायी जाती है.


श्रीकंठ में छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं.

 
 
 

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