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व्रज - चैत्र शुक्ल प्रतिपदा २०८२

व्रज - चैत्र शुक्ल प्रतिपदा २०८२

Sunday, 30 March 2025


भारतीय नव-संवत्सर २०८२


चैत्र मास संवत्सर परवा, वरस प्रवेश भयो है आज l

कुंज महल बैठे पिय प्यारी, लालन पहेरे नौतन साज ll 1 ll

आपुही कुसुम हार गुही लीने, क्रीड़ा करत लाल मन भावत l

बीरी देत दास ‘परमानंद’, हरखि निरखि जश गावत ll 2 ll


आप सभी वैष्णवों को नव-संवत्सर २०८० की ख़ूबख़ूब बधाई


श्रृंगार समय प्रभु के मुख्य पंड्याजी श्रीजी के सम्मुख नववर्ष का पंचांग वाचन करते हैं एवं न्यौछावर की जाती है.


आज से आरती में एक खंड कम रखा जाता हैं


श्रृंगार दर्शन


कीर्तन – (राग : बिलावल)


नवनिकुंज देवी जय राधिका, वरदान नीको देहौ, प्रिय वृन्दावन वासिनी l

करत लाल आराधन, साधन करी प्रन प्रतीत, नामावली मंत्र जपत जय विलासीनी ll 1 ll

प्रेम पुलक गावत गुन, भावत मन आनंद भर, नाचत छबि रूप देखी मंद हासिनी l

अंगन पर भूषण पहिराई, आरसी दिखाई, तोरत तृन लेत बलाई सुख निवासीनी ll 2 ll....अपूर्ण


साज – आज श्रीजी में केसरी मलमल पर लाल छापा की हरी किनारी के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. सिंहासन, चरणचौकी, पडघा, झारीजी आदि स्वर्ण जड़ाव के धरे जाते हैं. प्रभु के सम्मुख चांदी के त्रस्टीजी धरे जाते हैं जो प्रतिदिन राजभोग पश्चात अनोसर में धरे जाते हैं.


वस्त्र – श्रीजी को आज लाल छापा का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, लाल छापा की चोली एवं खुलेबंद के चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग दरियाई वस्त्र के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा – हीरा की प्रधानता, मोती, माणक, पन्ना एवं स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लाल छापा की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पान, टीका, दोहरा त्रवल, पांच मोरपंख की चंद्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

बायीं ओर हीरा की चोटी धरायी जाती है. श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.

श्रीकंठ में पदक, हार, माला, दुलड़ा आदि धराये जाते हैं.

श्रीकंठ में कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती हैं.

चैत्री गुलाब के पुष्पों की सुन्दर वनमाला धरायी जाती है.

श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट उत्सव का, गोटी सोने की जाली वाली व आरसी श्रृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोना की डांडी आती है. पीठिका पर लाल छापा का सेला धराया जाता है.


गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू अरोगाये जाते हैं. इसके अतिरिक्त प्रभु को दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का भोग भी अरोगाया जाता है.

राजभोग की अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता, सखड़ी में मीठी सेव व केसरी पेठा अरोगाये जाते हैं.

आज भोग समय फल के साथ अरोगाये जाने फीका के स्थान पर तले सूखे मेवे की बीज-चलनी अरोगायी जाती है



सभी वैष्णवों को भारतीय नववर्ष की मंगल कामना

 
 
 

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