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व्रज - फाल्गुन कृष्ण तृतीया

व्रज - फाल्गुन कृष्ण तृतीया

Saturday, 15 February 2025


फागुन में रसिया घर बारी फागुन में ।

हो हो बोले गलियन डोले गारी दे दे मत वारी ।।१।।

लाजधरी छपरन के ऊपर आप भये हैं अधिकारी ।

पुरुषोत्तम प्रभु की छबि निरखत ग्वाल करे सब किलकारी ।।२।।


गुलाल की चोली


विशेष – फाल्गुन मास में होली की धमार एवं विविध रसभरी गालियाँ भी गायी जाती हैं. विविध वाद्यों की ताल के साथ रंगों से भरे गोप-गोपियाँ झूमते हैं. कई बार गोपियाँ प्रभु को अपने झुण्ड में ले जाती हैं और सखी वेश पहनाकर नाच नचाती हैं और फगुआ लेकर ही छोडती हैं.


इसी भाव से आज श्रीजी को हरे घेरदार वागा पर गुलाल की चोली धरायी जाती है. चोली की गुलाल में गुलाब का इत्र मिश्रित होता है. चोली को गुलाल से ही खेलाया जाता है जबकि अन्य सभी वस्त्र गुलाल, अबीर, चन्दन व चोवा से खेलाए जाते हैं.


फाल्गुन मास में श्रीजी चोवा, गुलाल, चन्दन एवं अबीर की चोली धराकर सखीवेश में गोपियों को रिझाते हैं.


राजभोग समय अष्टपदी गाई जाती है.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : जेतश्री/घनाश्री)


रिझावत रसिक किशोर को खेलतरी प्यारी राधा फाग l पहेरे नवरंग चूनरी अंगियारी आछे अंग लाग ll 1 ll

कनिक खचित खुभिया बनी दुलरीरी मोतिन बिच लाल l किकिंनी नूपुर मेखला लोचनरी शुभ सुखद विशाल ll 2 ll

गौर गातकी कहा कहु बेसरि रही कच अरुझाय l सब सुंदरी मिलि गावही, देखत हु मनमथ हिल जाय ll 3 ll

मृदुमुसकनि मुख पटदयो पिचकारी कर लई है दुराय l बंदनबुकी अंजुली नागरि ले दई उड़ाय ll 4 ll

मिडत लोचन नागरि पकरयो पीताम्बर धाय l सबे सखी जुरि आय गई, घेरे हो मोहन बलिआय ll 5 ll

मुरली छीनी चुम्बन दीयो कीनों अधरामृत पान l कमल कोष ज्यों भृंगको छांड़त नहीं बिन भये विहान ll 6 ll

मानो बहुरंग विकसत कमल मधुकर मन मोहनलाल l नयनन स्वाद सबे गहे पीवत मकरंद रसाल ll 7 ll

ऋतु वसंत बन गहगह्यो कूजत शुकपिक अलिमोर l तान मानगति भेदसों गावत गिरिधर पियजोर ll 8 ll

बेन झांझ डफ झालरी गोमुख ताल मुरंज मुखचंग l युवती युथ बजावही निर्तत मधि साल अंग ll 9 ll

त्रिगुण समीर त्यहां बहे सुंदर कालिंदीकूल l सुर सुरपति सुरअंगना डारत जयजय कहि फूल ll 10 ll

निरख निरख सचुपावही मनभये खगमृग व्रजवास l श्रीवल्लभ पदरज प्रतापबल गावत ‘विष्णुदास’ रसरास ll 11 ll


साज - आज श्रीजी में आज सफ़ेद रंग की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया गया है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज के वस्त्रों में लाल एवं हरे रंगों का सुन्दर संयोजन होता है. आज श्रीजी को हरे रंग का सूथन एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. गुलाल की लाल चोली धरायी जाती है. रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित लाल कटि-पटका धराया जाता है जिसका एक छोर आगे व दूसरा बगल में होता है.

लाल रंग के मोजाजी एवं मेघश्याम रंग के ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं. चोली को गुलाल से ही खेलाया जाता है और अन्य सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं.


श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) चार माला का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर लाल रंग की हरी खिड़की वाली पाग के ऊपर सिरपैंच, लाल रंग का रेशम का जमाव (नागफणी) का कतरा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.

श्रीकंठ में त्रवल नहीं धराये जाते व कंठी धरायी जाती है. सफ़ेद एवं पीले पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में पुष्प की छड़ी, स्वर्ण के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट चीड़ का व गोटी फागुन की आती है.


संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीमस्तक व श्रीकंठ के आभरण बड़े किये जाते हैं परन्तु गुलाल की चोली नहीं खोली जाती है.


शयन समय श्रीमस्तक पर रुपहली लूम-तुर्रा धराये जाते हैं.

 
 
 

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