व्रज - वैशाख कृष्ण प्रतिपदा (द्वितीय)
- Reshma Chinai
- Apr 14
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व्रज - वैशाख कृष्ण प्रतिपदा (द्वितीय)
Monday, 14 April 2025
केसरी मलमल के धोती पटका पर लाल खुले बन्ध के एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर क़तरा के शृंगार
आज मेष संक्रांति है जिसे पुष्टिमार्ग में सतुवा संक्रांति भी कहा जाता है.
भारत में सामान्य लोग केवल मकर-संक्रांति के विषय में जानते हैं क्योंकि इस दिन दान-पुण्य किया जाता है परन्तु पुष्टिमार्ग में भी दो (मेष एवं मकर) संक्रांति को मान्यता दी गयी है.
मकर-संक्रांति 14 जनवरी एवं मेष-संक्रांति आज अर्थात 14 अप्रेल को मनायी जाती है.
इस वर्ष सोमवार, 14 अप्रेल 2025 को सूर्य का मेष राशि में संक्रमण रात्रि 03 बजकर 22 मिनिट से हुआ है
अतः पुण्यकाल सूर्योदय से माना जाएगा एवं सूर्योदय (प्रातः 6:15 बजे) से पास के दो घंटे अति मुख्य पुण्यकाल है अतः आज श्रीनाथजी को प्रातः ग्वाल समय उत्सव भोग रखे जाएंगे.
अष्ट प्रहर की सेवा करने वाले समस्त वैष्णव भी इसी प्रकार अपने सेव्य ठाकुरजी को सतुवा का भोग धरें एवं तत्पश्चात दान आदि कर सकते हैं.
अन्य वैष्णव आज सायं अथवा कल प्रातः से सतुवा श्री ठाकुरजी को अरोगा सकते हैं.
श्रीजी को उत्सव भोग में सतुवा के गोद के (सामान्य से बड़े) नग, श्री नवनीतप्रियाजी, श्री विट्ठलनाथजी एवं श्री द्वारकाधीशजी के घर से सिद्ध होकर पधारी सतुवा की सामग्री, दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांड़ी, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा एवं बीज-चालनी का नमकीन सूखे मेवे का भोग अरोगाया जाता है.
आज से प्रतिदिन राजभोग की सखड़ी में प्रभु को सीरा के रूप में सिद्ध घोला हुआ सतुवा अरोगाया जायेगा.
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : आसावरी)
देखो अद्भुत अविगतकी गति कैसो रूप धर्यो है हो ।
तीन लोक जाके उदर बसत है सो सुप के कोने पर्यो है ।।१।।
नारदादिक ब्रह्मादिक जाको सकल विश्व सर साधें हो ।
ताको नार छेदत व्रजयुवती वांटि तगासो बाँधे ।।२।।
जा मुख को सनकादिक लोचत सकल चातुरी ठाने ।
सोई मुख निरखत महरि यशोदा दूध लार लपटाने ।।३।।
जिन श्रवनन सुनी गजकी आपदा गरुडासन विसराये ।
तिन श्रवननके निकट जसोदा गाये और हुलरावे ।।४।।
जिन भूजान प्रहलाद उबार्यो हरनाकुस ऊर फारे ।
तेई भुज पकरि कहत व्रजगोपी नाचो नैक पियारे ।।५।।
अखिल लोक जाकी आस करत है सो माखनदेखि अरे है ।
सोई अद्भुत गिरिवरहु ते भारे पलना मांझ परे है ।।६।।
सुर नर मुनि जाकौ ध्यान धरत है शंभु समाधि न टारी ।
सोई प्रभु सूरदास को ठाकुर गोकुल गोप बिहारी ।।७।।
साज – आज श्रीजी में केसरी रंग की मलमल की, रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है.
गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती हे.
वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी रंग की धोती, लाल रंग के खुलेबंद के चाकदार वागा, चोली एवं केसरी रंग का अंतरवास का राजशाही पटका धराया जाता है.
सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.
श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
पन्ना के सर्व आभरण धराया जाते हैं.
श्रीमस्तक पर केसरी रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, क़तरा ,तुर्री व लुम तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
कमल माला धरावे.
गुलाबी एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हरे मीना के वेणुजी वेत्र धराये जाते हैं.

पट केसरी व गोटी मीना की आती है.
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