top of page
Search

व्रज - वैशाख शुक्ल एकादशी

व्रज - वैशाख शुक्ल एकादशी

Sunday, 19 May 2024

मोहिनी एकादशी

दिन दुल्हे तेरे सोहे शीश सुहावनो ।

मणि मोतिन को शेहरो सोहे बसियो मन मेरे ।।१।।

मुख पून्यो को चंद है मुक्ताहल तारे ।

उन के नयन चकोर हैं, ऐ सब देखन हारे ।।२।।

पिय बने प्यारि, अति सुंदर बनि आय ।

परम आगरी रूप नागरी ऐ सब देखन आई ।।३।।

दुलहनि रेन सुहाग की, दुलह सुंदर वर पायो ।

श्रीनंदलाल को शेहरो, जन परमानंद यश गायो ।।४।।

केसरी (चंदनिया) रंग के धोती पटका एवं श्रीमस्तक पर दुमाला पर मोती के सेहरा के श्रृंगार

राजभोग दर्शन -

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज बने गिरिधारी दूलहे,

चंदन की तन खोर करें ।।

सकल सिंगार बने मोतीनके,

बिविध कुसुम की माला गरें ।।१।।

खासा को कटि बन्यो पिछोरा,

मोतीन सहेरो शीश धरें ।।

राते नयन बंक अनियारे,

चंचल खंजन मान हरें ।।२।।

ठाडे कमल फिराजत,

गावत कुंडल श्रमकण बिंदु परें ।।

सूरदास मदन मोहन मिल,

राधासों रति केलि करें ।।३।।

साज – आज श्रीजी में सेहरा का श्रृंगार धराये श्री स्वामिनीजी, श्री यमुनाजी एवं मंगलगान करती व्रजगोपियों के सुन्दर चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी मलमल की धोती एवं राजशाही पटका धराया गया है. दोनों वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य के ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया गया है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर केसरी रंग के दुमाला के ऊपर मोती का सेहरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये हैं. दायीं ओर सेहरे की मोती की चोटी धरायी गयी है. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये हैं.

श्रीकंठ में कली आदि सब माला धरायी जाती है.

श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर कलात्मक मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में दो कमल की कमलछड़ी, गंगा जमुनी के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.


ree

पट ऊष्णकाल का, गोटी राग-रंग की आती है.

 
 
 

Comments


© 2020 by Pushti Saaj Shringar.

bottom of page