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हटरी का रसात्मक भाव

हटरी का रसात्मक भाव


श्री गोकुलनाथजी एवं श्री हरिरायचरण कृत भावभावना में 'हटरी' का रसात्मक भाव स्पष्ट किया गया है....तदनुसार हटरी रसोद्दीपन का भाव है...


हटरी लीला में जब व्रजभक्तिन सौदा लेने को आती हैं...तो वहाँ अनेक प्रकार से हास्यादिक, कटाक्षादिक आश्लेशादिक करके भाव उद्दीपन किया जाता है....इस उद्दीपनलीला का संकेत श्रीहरिरायचरण भी स्वरचित पद के माध्यम से देते हैं----


गृह-गृह ते गोपी सब आई, भीर भई तहाँ ठठरी।


तोल-तोल के देत सबनको भाव अटल कर राख्यो अटरी।।


'रसिक' प्रीतम के नयनन लागी,श्रीवृषभान कुँवरि की।।


'हटरी' शब्द का अर्थ बताते हुए श्रीहरीरायचरण आज्ञा करे है की....


"हटरी" = हट + री


अर्थात एक सखी दूसरी सखी को कह रही है कि....


तू हट री अब मोंकू प्रभु के लावण्यामृत को पान रसास्वादन करिबे दे


दीपदान दे हटरी बैठे


नन्द बाबा के साथ ।।


नाना विध के मेवा मिठाई


बाटत अपुने हाथ ।।


विविध सिंगार पहर पट


भूषण और चन्दन दिये माथ ।


नन्द दास संग जाके


आगे गिरि गोवर्धननाथ ।।


सादर प्रणाम।जय श्रीकृष्णा।।

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