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व्रज - आषाढ़ कृष्ण तृतीया

व्रज - आषाढ़ कृष्ण तृतीया

Sunday, 27 June 2021


प्राचीन बसरा के मोतियों का मल्लकाछ-टिपारा के श्रृंगार


जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.


ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को प्राचीन बसरा के मोतियों का मल्लकाछ-टिपारा का श्रृंगार धराया जायेगा.


मल्लकाछ शब्द दो शब्दों (मल्ल एवं कच्छ) से बना है. ये एक विशेष परिधान है जो आम तौर पर पहलवान मल्ल (कुश्ती) के समय पहना करते हैं. यह श्रृंगार पराक्रमी प्रभु को वीर-रस की भावना से धराया जाता है.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


गोविंद लाडिलो लडबोरा l

अपने रंग फिरत गोकुलमें श्यामवरण जैसे भोंरा ll 1 ll

किंकणी कणित चारू चल कुंडल तन चंदन की खोरा l

नृत्यत गावत वसन फिरावत हाथ फूलन के झोरा ll 2 ll

माथे कनक वरण को टिपारो ओढ़े पिछोरा l

‘परमानंद’ दास को जीवन संग दिठो नागोरा ll 3 ll


साज – आज श्रीजी में श्वेत जाली (Net) पर लहरियाँ के काम (Work) से सुशोभित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की गयी है.


वस्त्र – श्रीजी को आज बसरा के मोतियों से गूंथा हुआ मल्लकाछ एवं पटका धराया जाता है.


श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य (घुटने तक) का ऊष्णकालीन हल्का (छेड़ान) शृंगार धराया जाता है. मोती के सर्वआभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर टिपारा का साज (मोती की टिपारा की टोपी के ऊपर मध्य में श्वेत रेशम की मोरशिखा तथा दोनों ओर श्वेत रेशम के दोहरा कतरा) धराये जाते हैं. बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मोती के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मोती की चोटी धरायी जाती है. श्वेत एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

हांस, त्रवल, कड़ा, हस्तसांखला, पायल आदि सभी भारी शृंगारवत धराये जाते हैं.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, मोती के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट उष्णकाल का व गोटी बाघ बकरी की आती हैं.

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