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व्रज - चैत्र कृष्ण प्रतिपदा

व्रज - चैत्र कृष्ण प्रतिपदा

Saturday, 15 March 2025


लाल नेक भवन हमारे आवो ।

जो मांगो सो देहो मोहन ले मुरली कल गावो ।।१।।

मंगलचार करो गृह मेरे संगके सखा बुलावो ।

करो विनोद सुंदर युवतीनसों प्रेम पीयूष पीवावो ।।२।।

बलबल जाऊं मुखारविंदकी ललित त्रिभंग दीखावो ।

परमानंद सहचरी रसभर ले चली करत उपावो ।।३।।


द्वितीया पाट


आज प्रभु को नियम के सुनहरी ज़री के चाकदार वस्त्र और श्रीमस्तक पर हीरा की कुल्हे पर सुनहरी घेरा धराये जाते हैं.


उत्सव के कारण गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में चाशनी लगे पक्के गुंजा अरोगाये जाते हैं. इसके अतिरिक्त प्रभु को दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का भोग भी अरोगाया जाता है.


राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.


श्रृंगार दर्शन


साज – आज श्रीजी में फूलक शाही ज़री की हरे हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर से सफेदी बड़ी कर (हटा) दी जाती है. उत्सव के दिवसों में मलमल के गादी-तकियों में सफ़ेद बिछावट नहीं की जाती इसलिए ऐसा कहा जाता है.


वस्त्र – आज श्रीजी को सुनहरी ज़री के बिना किनारी के सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका रूपहरी ज़री का धराया जाता हैं. ठाडे वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा – हीरा की प्रधानता के मोती, माणक, पन्ना एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर जड़ाव स्वर्ण की कुल्हे के ऊपर सुनहरी जड़ाव का घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर हीरा की चोटीजी धरायी जाती है.

नीचे सात पदक ऊपर हीरा, पन्ना, माणक, मोती के हार व माला धराये जाते हैं. कली, कस्तूरी आदि माला धरायी जाती हैं.

चैत्री गुलाब के पुष्प की सुन्दर थागवाली वनमाला धरायी जाती है.

श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट उत्सव का एवं गोटी जड़ाऊ की आती है.


आरसी चार झाड़ की दिखाई जाती है.

 
 
 

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