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व्रज – पौष शुक्ल चतुर्दशी (त्रयोदशी क्षय)

व्रज – पौष शुक्ल चतुर्दशी (त्रयोदशी क्षय)

Sunday, 12 January 2025


कहो तुम सांचि कहांते आये भोर भये नंदलाल ।

पीक कपोलन लाग रही है घूमत नयन विशाल ।।१।।

लटपटी पाग अटपटी बंदसो ऊर सोहे मरगजी माल ।

कृष्णदास प्रभु रसबस कर लीने धन्य धन्य व्रजकी लाल ।।२।।


नवम (पतंगी) घटा


आज श्रीजी में पतंगी (गहरे गुलाबी) घटा के दर्शन होंगे. इसका क्रम नियत नहीं है और खाली दिन होने के कारण आज ली जा रही है.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : आसावरी)


आजु नीको जम्यो राग आसावरी l

मदन गोपाल बेनु नीको बाजे नाद सुनत भई बावरी ll 1 ll

कमल नयन सुंदर व्रजनायक सब गुन-निपुन कियौ है रावरी l

सरिता थकित ठगे मृग पंछी खेवट चकित चलति नहीं नावरी ll 2 ll

बछरा खीर पिबत थन छांड्यो दंतनि तृन खंडति नहीं गाव री l

‘परमानंद’ प्रभु परम विनोदी ईहै मुरली-रसको प्रभाव री ll 3 ll


साज – श्रीजी में आज पतंगी रंग की दरियाई की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर पतंगी बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को पतंगी रंग का दरियाई का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र भी पतंगी रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर पतंगी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, चमकना रूपहरी कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीमस्तक पर अलख धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के कर्णफूल धराये जाते हैं.

सभी समाँ में गुलाब के पुष्पों की सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. आज पचलड़ा एवं हीरा का हार धराया जाता है. श्रीहस्त में चांदी के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट पतंगी व गोटी चांदी की आती है.



संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर हल्के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर रुपहली लूम तुर्रा धराये जाते हैं.

 
 
 

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