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व्रज – फाल्गुन कृष्ण दशमी

व्रज – फाल्गुन कृष्ण दशमी

Sunday, 23 February 2025


गुलाबी लट्ठा के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर सीधी चन्द्रिका के शृंगार


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : वसंत)


आई ऋतु चहूँदिस फूले द्रुम कानन कोकिला समूह मिलि गावत वसंतहि।

मधुप गुंजारत मिलत सप्तसुर भयो है हुलास तन मन सब जंतहि॥

मुदित रसिक जन उमगि भरे हैं नहिं पावत मन्मथ सुख अंतहि।

कुंभनदास स्वामिनी बेगि चलि यह समें मिलि गिरिधर नव कंतहि॥


साज – आज श्रीजी में श्वेत मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को गुलाबी लट्ठा का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं लाल रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघस्याम रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि की टिपकियों से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.


श्रृंगार – आज श्रीजी को फ़ागण का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर गुलाबी छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, सीधी चन्द्रिका लूम तुर्रा रूपहरी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.

आज श्रीकंठ में अक्काजी की एक माला धरायी जाती हैं.

गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, स्याम मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट चीड़ का एवं गोटी फागुन की आती है.


संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं.


लूम तुर्रा रूपहरी धराये रहे.

 
 
 

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