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व्रज – माघ शुक्ल द्वादशी

व्रज – माघ शुक्ल द्वादशी

Sunday, 09 February 2025


छप्पनभोग मनोरथ (बड़ा मनोरथ)


श्वेत लट्ठा के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर लाल टीपारा के ऊपर केसरी गौकर्ण और रूपहरी घेरा के शृंगार


आज श्रीजी में श्रीजी में किन्हीं वैष्णव द्वारा आयोजित छप्पनभोग का मनोरथ होगा.

नियम (घर) का छप्पनभोग वर्ष में केवल एक बार मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा को ही होता है. इसके अतिरिक्त विभिन्न खाली दिनों में वैष्णवों के अनुरोध पर श्री तिलकायत की आज्ञानुसार मनोरथी द्वारा छप्पनभोग मनोरथ आयोजित होते हैं.

इस प्रकार के मनोरथ सभी वैष्णव मंदिरों एवं हवेलियों में होते हैं जिन्हें सामान्यतया ‘बड़ा मनोरथ’ कहा जाता है.

बड़ा मनोरथ के भाव से श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.


आज दो समय की आरती थाली की आती हैं.


मणिकोठा, डोल-तिबारी, रतनचौक आदि में छप्पनभोग के भोग साजे जाते हैं अतः श्रीजी में मंगला के पश्चात सीधे राजभोग अथवा छप्पनभोग (भोग सरे पश्चात) के दर्शन ही खुलते हैं.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.

राजभोग की अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता एवं सखड़ी में मीठी सेव, केसरयुक्त पेठा व पाँच-भात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात) अरोगाये जाते हैं.


छप्पनभोग दर्शन में प्रभु सम्मुख 25 बीड़ा सिकोरी (सोने का जालीदार पात्र) में रखे जाते है.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


मदन गोपाल गोवर्धन पूजत l

बाजत ताल मृदंग शंखध्वनि मधुर मधुर मुरली कल कूजत ll 1 ll

कुंकुम तिलक लिलाट दिये नव वसन साज आई गोपीजन l

आसपास सुन्दरी कनक तन मध्य गोपाल बने मरकत मन ll 2 ll

आनंद मगन ग्वाल सब डोलत ही ही घुमरि धौरी बुलावत l

राते पीरे बने टिपारे मोहन अपनी धेनु खिलावत ll 3 ll

छिरकत हरद दूध दधि अक्षत देत असीस सकल लागत पग l

‘कुंभनदास’ प्रभु गोवर्धनधर गोकुल करो पिय राज अखिल युग ll 4 ll


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : वसंत)


नृत्यत गावत बजावत मधुर मृदंग, सप्तस्वरन मिलि राग हिंडोल l

पंचमस्वर ले अलापत उघटत है सप्तान मान, थेईता थेईता थेई थेई कहति बोल ll 1 ll

कनकवरन टिपारो सिर कमलवदन काछनी कटि, छिरकत राधा करत कलोल l

‘कृष्णदास’ नटवर गिरिधरपिय, सुरबनिता वारत अमोल ll 2 ll


साज – आज श्रीजी में आज सफ़ेद रंग की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया गया है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को लाल लट्ठा का सूथन, चोली, चाकदार वागा तथा लाल रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि की टिपकियों से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.


श्रृंगार – आज श्रीजी को वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे, लाल व सफ़ेद मीना तथा जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर लाल रंग की टिपारा की टोपी के ऊपर केसरी गौकर्ण, रूपहरी चमक का घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मोती की चोटी धरायी जाती है. गुलाबी, सफ़ेद एवं पीले पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में पुष्प की छड़ी, लहरियाँ के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट चीड़ का एवं गोटी फागुन की आती है.


संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं.


श्रीमस्तक पर टीपारा रहे लूम तुर्रा नहीं आवे.

 
 
 

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