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व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण तृतीया

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण तृतीया

Monday, 18 November 2024


केसरी साटन के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर दुरंगी पाग पर क़तरा के शृंगार


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : आसावरी)


सुनि मेरो वचन छबीली राधा, ते पायो रससिन्धु अगाधा।।१।।

जे रस निगम नेति नेति भाख्यो, ताकौ तै अधरामृत चाख्यो।।२।।

सिवविरंचि के ध्यान न आवै, ताको कुंजनि कुसुम बिनावे।।३।।

तु वृषभान गोपकी बेटी, मोहन लालको भावते भेटी।।४।।

तेरो भाग्य मोहि क़हत न आवे, कछुक रस परमानंद गावै ॥॥५॥॥


साज – श्रीजी में आज केसरी रंग की रुपहली ज़री की तुईलैस के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रंग की साटन (Satin) का सूथन, चोली, घेरदार वागा तथा मोजाजी धराये जाते हैं. घेरदार वागा, रूपहरी किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) चार माल का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फिरोज़ा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर केसरी व सफेद रंग की दुरंगी पाग के ऊपर सिरपैंच, क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.

श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में फ़िरोज़ा के वेणुजी एवं वेत्रजी धरायी जाते हैं.


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पट केसरी एवं गोटी चाँदी की आती है.

 
 
 

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